Lord Jamvant Katha
अगर आप जामवंत व्रत कथा PDF में खोज रहे है तो आप सही जगह आए है। आप यह से जामवंत कथा को पढ़ सकते हैं। जामवन्त (Jamwant) का जन्म अग्नि पुत्र के रूप में देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए हुआ था। कहा जाता है कि वह राजा बलि के काल में भी थे। वामन अवतार के समय जामवन्त अपनी युवावस्था में थे। वहीं एक दूसरी मान्यता के मुताबिक भगवान ब्रह्मा ने दो पैरों पर चल सकने वाला और संवाद करने वाला एक रीछ मानव बनाया था।
ये माना जाता है कि देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए जामवन्त का जन्म अग्नि के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता एक गंधर्व कन्या थीं। सृष्टि के आदि में प्रथम कल्प के सतयुग में जामवन्तजी उत्पन्न हुए थे। जामवन्त ने अपने सामने ही वामन अवतार को देखा था। प्राचीन काल में जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता था। बाद में यह ऋक्ष शब्द बिगड़कर रीछ अर्थात भालू के राजा हो गया। वहीं रामायण आदि ग्रंथों में भी उनका चित्रण भालू मानव के रूप में किया गया है।
जामवंत की कहानी (Lord Jamvant Katha in Hindi)
प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास और जामवन्त आदि कई ऋषि, मुनि और देवता सशरीर आज भी जीवित हैं। कहते हैं कि जामवन्तजी बहुत ही विद्वान् हैं। वेद उपनिषद् उन्हें कण्ठस्थ हैं। वह निरन्तर पढ़ा ही करते थे और इस दिव्य स्वाध्यायशीलता के कारण ही उन्होंने लम्बा जीवन यानि अमरता तक को प्राप्त किया था।
परशुराम और हनुमान के बाद जामवन्त ही एक ऐसे दिव्य व्यक्ति थे जिनके तीनों युग (सतयुग, त्रेता और द्वापर युग) में होने का वर्णन मिलता है और कहा जाता है कि वे आज भी जिंदा हैं। जामवन्त जी की उम्र परशुराम और हनुमान से भी लंबी उम्र है क्योंकि उनका जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। जामवंत भगवान श्री हरि के वामन अवतार के साक्षी हैं। जामवन्त को परम ज्ञानी और अनुभवी माना जाता था। उन्होंने ही हनुमानजी से हिमालय में प्राप्त होने वाली चार दुर्लभ औषधियों का वर्णन किया था जिसमें से एक संजीविनी थी।
रावण वध के बाद जामवन्त ने भगवान श्री राम से कहा, प्रभु इस युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही दब गई। उस समय भगवान श्री राम ने जामवन्त से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं अगला अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इस गुफा में रहकर तपस्या करो।
श्रीकृष्ण जी पर जब स्यामंतर मणि की चोरी का झूठा आरोप लगा। तब सत्य की रक्षा और त्रेता का वचन पूर्ण करने के लिए गुजरात के पोरबंदर से 17 किलोमीटर दूर राजकोट-पोरबंदर मार्ग पर एक गुफा है जिसे जामवन्त की गुफा कहा जाता है। यहीं पर श्री कृष्ण जी को अपने वचन के कारण जाम्बवंत जी से युद्ध करना पड़ा। बाद में जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने प्रभु श्रीराम को पुकारा और उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण जी को अपने रामस्वरूप में आना पड़ा। तब जाम्बवंत ने अपनी भूल स्वीकारी और उन्होंने मणि के साथ निवेदन किया कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें।
भगवान श्री कृष्ण जी ने जामवंती से विवाह किया और कृष्ण और जामवंती के पुत्र साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का अंत हुआ, माना जाता है । हाँ, जामवंत कलयुग में भी होगें… कहीं भगवान की भक्ति में तपस्यारत्। भगवान के भक्तों को संसार से नहीं सिर्फ़ भगवान के दर्शन की प्यास होती है।