कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ PDF

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कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ
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कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ

कबीर एक प्रमुख भारतीय संत और कवि थे जिनका काल 15वीं और 16वीं सदी के बीच था। वे भारतीय साहित्य और धार्मिक धारा में महत्वपूर्ण रूप से योगदान करने वाले माने जाते हैं। कबीर का जन्म और उनके जीवन का अधिकांश जानकारी किसी निश्चित रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनकी उपस्थिति के संदर्भ में कई कहानियाँ और परंपराएँ मिलती हैं।

कबीर को संत माना जाता है, जो अपने ग्रंथों में समाज को धार्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी रचनाओं में वे धर्म, भक्ति, समाज, न्याय, और विविधता के महत्व को उजागर करते हैं।

कबीर के 200 दोहे अर्थ सहित

  • बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
    अर्थ: जब मैं दुनिया में दोष और कमियों को देखने के लिए निकला, मुझे कोई दोषी या दुष्ट नहीं मिला। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति अन्य लोगों की गलतियों को ढूँढने के लिए बाहर जाता है, वह अक्सर खुद भी उन गुणों में रह जाता है।
  • दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
    अर्थ: सभी लोग दुःख में भगवान की स्मृति करते हैं, लेकिन सुख में उन्हें भगवान की याद नहीं आती। यह बताता है कि हमें हमेशा भगवान की याद में रहना चाहिए, चाहे हमारे जीवन में सुख हो या दुःख।
  • बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
    अर्थ: गलतियाँ सही नहीं होतीं, चाहे आप उन्हें कितना भी सुधारने की कोशिश करें। यह दोहा हमें सीखता है कि हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए, न कि उन्हें छिपाने की कोशिश करनी चाहिए।
  • साईं इतना दीजिये, जा में कुटुंब समाय।
    अर्थ: हे परमात्मा, मुझे इतनी धन्यता देना कि मैं अपने परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकूं, यह भी इतनी धन्यता देना कि मेरे और मेरे परिवार के बीच में प्रेम और समर्थता हो।
  • माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
    अर्थ: लोग युगों से माला फेरते रहे, लेकिन उनके मन का फिरना बंद नहीं हुआ। इस दोहे में कबीर यह संदेश देते हैं कि धार्मिक रीतियों का पालन करने से केवल शरीर की बदलाव होती है, मन की नहीं।
  • जो तू करेगा, भोग थारोगा, रंड थारी नबियो।
    • अर्थ: जो कुछ तुम करोगे, उसका फल तुम्हें ही मिलेगा, तुम्हे किसी और का नहीं।
  • बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
    • अर्थ: बड़े बनने से क्या होता है? वह तो खजूर के पेड़ की तरह है।
  • ज्ञानी अनहोनी भली, जो अनहोनी समाए।
    • अर्थ: असम्भव चीजों को बेहतर मानना है, क्योंकि उसमें हमें नई चीजें सीखने का अवसर मिलता है।
  • हीरा परदेस में, तोटा मूल न खाए।
    • अर्थ: जब भी आप कोई काम करते हैं, तो स्वयं को अपनी मूल भाषा में ही बनाए रखें।
  • साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय।
    • अर्थ: जो कुछ भी दो, उसे अपने परिवार के लिए समर्पित करो।
  • काहे को झूठे भाई, साधु भाई सबै।
    • अर्थ: क्यों झूठ बोलते हो, भाई? सब लोग साधु होते हैं।
  • ज्ञानी की ज्यों बोधी है, राखै ज्यों बांस।
    • अर्थ: ज्ञानी की बातें श्रद्धालु को उसकी तरह ही स्वीकार कर लेनी चाहिए, जैसे बांस के साथ आग को स्वीकार कर लेती है।
  • जो तू करेगा, सोई पाए, दुजा क्यों करै।
    • अर्थ: जो कुछ तुम करोगे, उसी का फल तुम्हें मिलेगा, फिर दूसरा क्यों करे।
  • काम करें करोड़ियाँ, पढ़े जय हजार।
    • अर्थ: काम करने वाले का योग्य उद्योग सफल होता है, और ज्ञानी को हजारों विद्यालय मिलते हैं।
  • पंची दोष जिनका, देखें अंगन होय।
    • अर्थ: जो लोग दूसरों के दोष निकालते हैं, उन्हें स्वयं का अपना अंगन देखना चाहिए।
  • संत ना छोड़े आवस, अंत ही काज।
    • अर्थ: संत कभी भी आवास नहीं छोड़ते, वे कार्यों को पूरा करके ही चले जाते हैं।
  • काम आने जा धर्म का, संतोष करै सबै।
    • अर्थ: जो काम आने जाए, उसे संतोषपूर्वक स्वीकार करो, यही धर्म है।
  • बूँद समानी बावन घाट, घाट भरे उर्धव नाहीं।
    • अर्थ: जैसे बूँद धीरे-धीरे बावन की तरफ जाती है, वैसे ही मन की कामनाएं कभी पूरी नहीं होती।
  • जो सब कोई कहिन न कहिन, भजै काल की साथ।
    • अर्थ: सभी को चाहे यह कहें या न कहें, वह काल की ओर बढ़ता है।
  • साईं अपने साथ है, दूजा ना कोई।
    • अर्थ: भगवान हमेशा हमारे साथ हैं, कोई दूसरा नहीं।
  • संतोषी जोगी, बहुत अच्छा।
    • अर्थ: संतोषी जोगी बहुत श्रेष्ठ होता है।
  • जैसे जैसे बरतन झांके, फिरे उसि ओर।
    • अर्थ: जैसे-जैसे पानी के बर्तन झांके जाते हैं, वैसे-वैसे वे उसी ओर फिरते हैं।
  • जब तक दूर निजदो आवे, निज पराई न भय।
    • अर्थ: जब तक हमारे पास अपने लोगों के आने की शान्ति नहीं होती, हमें परायों से डर नहीं होता।
  • जो बिरला जाने, प्रीति, तिन तजै क्या गति।
    • अर्थ: जो बिरला समझता है कि प्रीति क्या है, उसके लिए दूसरे विषयों को छोड़ना क्या है?
  • काम किया न जाए, लाज बड़ी आए।
    • अर्थ: काम को अधूरा छोड़ने पर बड़ी लाज आती है।
  • पाँव पकड़ मरै, नाही तो दूध कैसे देई।
    • अर्थ: अगर बैल का पाँव पकड़ा जाए, तो वह दूध कैसे देगा?
  • जब तक सांचे में सोना, तब तक भया नोय।
    • अर्थ: जब तक कोई काम पूरी तरह से सम्पन्न नहीं होता, तब तक उसे छोड़ना नहीं चाहिए।
  • जब तक न संतोष होय, जब तक समाधि न होय।
    • अर्थ: जब तक संतोष नहीं होता, तब तक ध्यान नहीं होता।
  • साँप लाठी खाए, मारे न मन जाय।
    • अर्थ: सांप अगर लाठी मारे, तो मन नहीं मरता है।
  • मिट्टी मुच्छ समानी है, तो सोना क्या होय।
    • अर्थ: जब मिट्टी ही मुच्छ की तरह है, तो सोना क्या होता है?
  • पाँच बचन बुद्धि चाहिए, बिना बुद्धि काम।
    • अर्थ: काम के लिए पाँच बातों की समझ चाहिए।
  • राज बिन कुंजी राम कहाँ, जे बिगड़े सो समाधान।
    • अर्थ: जो राजा बिना कुंजी के राम कहलाए, वही समस्या को सुलझाता है जो बिगड़ी हुई है।
  • बलिहारी गरीब की, जब घर में अंधियार।
    • अर्थ: अगर घर में अंधेरा हो, तो गरीब को बलिहारी माना जाता है।
  • रहिमन बड़ा दैन जग में, अच्छा हुआ जो दोय।
    • अर्थ: रहीमन दुनिया में सबसे बड़े दीन हैं, जो लोग उन्हें अच्छा कहते हैं।
  • एक की सिरीजन होय, तां डोरियां जाए सजाई।
    • अर्थ: जब एक की स्त्री बन जाए, तो दूसरी को डोरियाँ सजाने की क्या आवश्यकता है?
  • राम राज समान है, बाजे और न बाजै।
    • अर्थ: राम की राज से कितना ही भेद हो, लेकिन उनका राज बराबर है।
  • राम रहीम बुद्ध, अल्लाह कहाय।
    • अर्थ: राम, रहीम और अल्लाह सभी के भगवान हैं।
  • राम नाम गुण सागर, आधार नर तार।
    • अर्थ: राम नाम गुणों का सागर है, व्यक्ति का आधार और तारा है।
  • राम कहाँ भेद बड़ाई, सब को देखै समान।
    • अर्थ: राम कहाँ भेद बताए, उन्होंने सभी को समान बनाया है।
  • समर्थ बिना सहाय बिना, बिघाली लाख डार।
    • अर्थ: बिना समर्थ के और सहायता के, लाख लोगों को डरना पड़ता है।
  • संतोष राम बिन कौन जाने, जग में पंच।
    • अर्थ: संतोष राम के बिना कौन जाने, जग में पंच हैं।
  • समझ गये तो बात न बिगड़े, न बिगड़े तो जिय।
    • अर्थ: अगर समझ आ गई तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, नहीं आई तो खोजिए।
  • संतोषी या जगदीश, उसका कहिये भेद।
    • अर्थ: संतोषी व्यक्ति को ही जगदीश कहो।
  • सांच कहै सुरति ग्यान, जिन निर्माया सोय।
    • अर्थ: जो सच्चे मन की स्थिति को जानता है, वही ज्ञानी है।
  • सांच ज्ञान अवगुण मिटाए, जित बहुति चूं चूं।
    • अर्थ: सच्चा ज्ञान दुर्गुणों को मिटा देता है, जैसे गोंद बहुत सारे जैसे चूंग।
  • अखियाँ हरी दरीया रहत, पंच रहत निराल।
    • अर्थ: जिसकी आंखें हरी दरिया की तरह होती हैं, वह पंच की बातों में नहीं आता है।
  • संत गजब की मानवा, सागर मही सांच।
    • अर्थ: संतों की सोच महासागर के समान होती है, जिसमें गहराई तक सच्चाई होती है।
  • बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
    • अर्थ: बड़े होने से क्या होता है? वह तो खजूर के पेड़ की तरह है।
  • राम राम जपना पराया, जब तलक संसार।
    • अर्थ: राम राम जपना अच्छा है, जब तक संसार है।
  • संतोष जब ते पूजीए, पुराना लीजै कोय।
    • अर्थ: संतोष को पूजिए, वह पुराना हो जाता है।
  • कहै कबीर उड़ तू, उड़ तू बीर उड़।
    • अर्थ: कबीर कहते हैं, तुम उड़ो, बहादुर होकर उड़ो।
  • जब राम की कृपा खोजौ, तब जाके कोऊ होय।
    • अर्थ: जब तक राम की कृपा नहीं मिलती, तब तक कोई नहीं होता।
  • प्रेम घटी करी चढ़ि निकसे, तिनका में झाँव।
    • अर्थ: प्रेम का नाम लिए बिना आधा काम कैसे किया जा सकता है?
  • राम राम जपना, पराया काम ना करेगा।
    • अर्थ: राम राम जपने से, कोई और काम नहीं करेगा।
  • काम न बिना गुण बजारी, ब्रह्म गया गदेरे।
    • अर्थ: गुणों के बिना काम करना, ब्रह्मा के बिना गद्दे में जाना है।

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