गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha)
गणेश चतुर्थी व्रत कथा में यह त्योहार हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। शास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी तिथि विशेष रूप से भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाने वाली एकदंत संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है।
गणेश चतुर्थी का आयोजन
गणेश चतुर्थी पर प्रमुख स्थानों पर भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का विधिपूर्वक नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। आसपास के लोग बड़ी संख्या में दर्शन करने के लिए आते हैं। इस दौरान धार्मिक गीत, भजन और उत्सव का माहौल बनता है।
विसर्जन और समापन
नौ दिन के पूजा-अर्चना के बाद, उत्सव का समापन गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा को जल में विसर्जित कर किया जाता है। यह विसर्जन बहुत ही भावुक और श्रद्धा से भरा होता है, जहाँ लोग एक साथ मिलकर अपने देवता को विदा करते हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha in Hindi)
एक समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह की तैयारियां चल रही थीं, इसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया लेकिन विघ्नहर्ता गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, ऐसा देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा। उन्होंने कहा कि भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण भेजा है, गणेश अपने माता-पिता के साथ आना चाहें तो आ सकते हैं। हालांकि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि वे नहीं आएं तो अच्छा है। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इस दौरान किसी देवता ने कहा कि गणेश जी अगर आएं तो उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनसे कहा जा सकता है कि आप चूहे पर धीरे-धीरे जाएंगे तो बाराज आगे चली जाएगी और आप पीछे रह जाएंगे, ऐसे में आप घर की देखरेख करें। योजना के अनुसार, विष्णु जी के निमंत्रण पर गणेश जी वहां उपस्थित हो गए। उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दे दी गई। बारात घर से निकल गई और गणेश जी दरवाजे पर ही बैठे थे, यह देखकर नारद जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि विष्णु भगवान ने उनका अपमान किया है। तब नारद जी ने गणेश जी को एक सुझाव दिया।
गणपति ने सुझाव के तहत अपने चूहों की सेना बारात के आगे भेज दी, जिसने पूरे रास्ते खोद दिए। इसके फलस्वरूप देवताओं के रथों के पहिए रास्तों में ही फंस गए। बारात आगे नहीं जा पा रही थी। किसी के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, तब नारद जी ने गणेश जी को बुलाने का उपाय दिया ताकि देवताओं के विघ्न दूर हो जाएं। भगवान शिव के आदेश पर नंदी गजानन को लेकर आए। देवताओं ने गणेश जी का पूजन किया, तब जाकर रथ के पहिए गड्ढों से निकल तो गए लेकिन कई पहिए टूट गए थे।
उस समय पास में ही एक लोहार काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। उसने अपना काम शुरू करने से पहले गणेश जी का मन ही मन स्मरण किया और देखते ही देखते सभी रथों के पहियों को ठीक कर दिया। उसने देवताओं से कहा कि लगता है आप सभी ने शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा नहीं की है, तभी ऐसा संकट आया है। आप सब गणेश जी का ध्यान कर आगे जाएं, आपके सारे काम हो जाएंगे। देवताओं ने गणेश जी की जय जयकार की और बारात अपने गंतव्य तक सकुशल पहुंच गई। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हो गया।
गणेश चतुर्थी व्रत पूजा विधि
- भगवान गणेश को पुष्प, सिंदूर, जनेऊ और दूर्वा (घास) चढ़ाए।
- इसके बाद गणपति को मोदक लड्डू चढ़ाएं, मंत्रोच्चार से उनका पूजन करें।
- गणेश जी की कथा पढ़ें या सुनें, गणेश चालीसा का पाठ करें और अंत में आरती करें।
- भगवान की पूजा करें और लाल वस्त्र चौकी पर बिछाकर स्थान दें।
गणेश चतुर्थी पूजा सामग्री
गणपति बप्पा की स्थापना से पहले पूजा की सारी सामग्री एकत्रित कर लें। पूजा के लिए चौकी, लाल कपड़ा, गणेश प्रतिमा, जल कलश, पंचामृत, लाल कपड़ा, रोली, अक्षत, कलावा, जनेऊ, गंगाजल, इलाइची-लौंग, सुपारी, चांदी का वर्क, नारियल, सुपारी, पंचमेवा, घी-कपूर की व्यवस्था कर लें। लेकिन ध्यान रखें कि श्रीगेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके स्थान पर गणपति बप्पा को शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा जिसे कि अच्छे तरीके से धो लिया हो, अर्पित करें।
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