अनंत चतुर्दशी व्रत कथा – Anant Chaturdashi Vrat Katha PDF

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अनंत चतुर्दशी व्रत कथा - Anant Chaturdashi Vrat Katha

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा – Anant Chaturdashi Vrat Katha

अनंत चतुर्दशी /गणेश विसर्जन हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। गणेश चतुर्थी के दस दिवसीय गणेश उत्सव का अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी होता है और इसे गणेश चौदस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश जी का विसर्जन करके उन्हें विदा किया जाता है साधारण रूप में अनंत चतुर्दशी गणेश चतुर्थी के दसवें दिन आती है अनंत चतुर्दशी को मुख्य रूप से जैन और हिंदू धर्म के लोग ही मनाते हैं। अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने वाले भक्त इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करते हैं।

अनंत चतुर्दशी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो कि हिन्दू पंचांग के आधार पर भाद्रपद मास के महीने में आता है (आमतौर पर अगस्त या सितंबर में होता है)। यह त्योहार विष्णु भगवान की पूजा और भक्ति के लिए महत्वपूर्ण है, और खासकर महाराष्ट्र राज्य के और कुछ अन्य भागों के हिन्दू भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। अनंत चतुर्दशी के दिन भक्त उपवास रखकर भगवान विष्णु अनंत रूप की पूजा करते हैं और भगवान विष्णु को अनंत सूत्र बांधा जाता है, जिससे सारी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। अनंत सूत्र कपड़े या रेशम का बना होता है और इसमें 14 गांठ लगी होती हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdashi Vrat Katha in Hindi)

प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई।

पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।

कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे।
सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं।

पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।

तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।

अनंत चतुर्दशी पूजा विधि – Anant Chaturdashi Pooja Vidhi

  • इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें।
  • इसके बाद कलश पर भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगाएं।
  • एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र बनाएं, इसमें 14 गांठें लगी होनी चाहिए।
  • इस सूत्रो भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें। अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूजा करें और ‘अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
  • अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।’ मंत्र का जाप करें।
  • इसके बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें. माना जाता है कि इस सूत्र को धारण करने से संकटों का नाश होता है।

अनंत चतुर्दशी पूजा सामग्री लिस्ट

  • इस पूजा में यमुना (नदी), शेष (नाग ) तिा अनंत ( श्री हरि ) की पूजा की जाती है ।
  • इस में कलश को यमुना के प्रतीक के रूप में, र्बूाद को शेष का प्रतीक तिा 14 गांठों वाले अनंत धागे को भगवान श्री हरि के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है । इस में फूल, पत्ती, नैवैद्य सभी सामग्री को 14 के गुणक के रूप में उपयोग ककया जाता है ।
  • ऐसा कहा जाता है कक यदर् यह व्रत 14 वषों तक ककया जाए, तो व्रती ववष्णुलोक की प्रास्त्तत किता है। पत्ते – 14 प्रकार के वक्षों के , कलश (ममट्टी का )-  एक र्बूाद चावल – 250ग्राम कपूि- एक पैके ट धूप – एक पैके ट पुष्पों की माला – चाि फल – सामर्थयादनुसाि पुष्प (14 प्रकाि के ) अंग वरि –एक नैवैद्य( मालपुआ ) ममष्ठान्न – सामर्थयादनुसाि अनंत सूि ( 14 गााँठों वाले ) – नये अनंत सूि ( 14 गााँठों वाले ) – पुिाने यज्ञोपवीत( जनेऊ) – एक जोडा वरि तुलसी र्ल पान- पााँच सुपािी- पााँच लौंग – एक पैके ट इलायची – एक पैके ट पंचामतृ (र्धू ,र्ही,घतृ ,शहर्,शक्कि) शेषनाग पर लेटे हुए श्री हरि की मूततद अिवा तरवीि आसन ( कम्बल )

अनंत चतुर्दशी के मुख्य धार्मिक और परंपरागत रूप

अनंत चतुर्दशी के मुख्य धार्मिक और परंपरागत रूप से अनुसरण किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं:

  1. पूजा और व्रत (Fasting and Worship): इस दिन, भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और विष्णु या सुदर्शन चक्र की मूर्ति या चित्र को पूजते हैं। बहुत से लोग इस दिन उपवास रखते हैं और व्रत का अनुष्ठान करते हैं।
  2. राखी बंधना (Tying of the Ananta Thread or Rakhi): इस दिन, बहनें अपने भाइयों के खुदे बनाए गए अनंत धागों को उनके हाथों में बांधती हैं और अनंत चतुर्दशी की शुभकामनाएँ देती हैं। यह परंपरा बहुत प्रिय होती है और भाइयों और बहनों के प्यार का प्रतीक होती है।
  3. धर्मिक अद्भुत कथा (Religious Narratives): अनंत चतुर्दशी के दिन, भगवान विष्णु की कथा और महत्व पर गाना और सुनना परंपरागत होता है। भक्त धर्मिक कथाओं को सुनकर आदर्श और मोरल सिखते हैं।
  4. दान और दान (Charity): अनंत चतुर्दशी के दिन, धर्मिक और पुण्य क्रियाएँ करने का महत्व होता है। लोग गरीबों को दान करते हैं और अच्छे काम करने का आलंब लेते हैं।
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