भागवत गीता के 700 श्लोक हिंदी
श्रीमद भगवत गीता के 700 श्लोक हिंदी में जीवन की हर समस्या का समाधान छुपा है। गीता के 18 अध्यायों और 700 गीता श्लोकों में कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य, असत्य जैसे महत्वपूर्ण जीवन के सवालों के उत्तर हैं। श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह गीता के श्लोक तब सुनाए जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने भाग लेने से इनकार कर दिया। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कर्म और धर्म का सच्चा रास्ता बताया। ये उपदेश “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संग्रहित हैं।
गीता एक अनमोल ज्ञान का स्रोत है, जिसके आगे भारत और विदेशों के विद्वानों ने भी नतमस्तक होकर इसकी महानता को स्वीकार किया है। जो लोग गीता का सम्यक् अध्ययन करते हैं, उन्हें अन्य ग्रंथों की गहराई में जाने की आवश्यकता नहीं महसूस होती। गीता के 700 श्लोक PDF का महत्व इतना है कि इसे भगवान की वाणी माना जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी श्रीधराचार्य द्वारा लिखित टीका को प्रमुखता दी गई है, और इसके अलग-अलग अनुभव के साथ एक अद्वितीय विशेषता है।
भागवत गीता के 700 श्लोक हिंदी में
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है। कर्म करो और फल की इच्छा मत करो क्योंकि फल देना मेरा काम है।
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, अच्छे लोगों की रक्षा करने, बुरे लोगों का विनाश करने और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ।
गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयोभोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।
हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान्॥
अर्थ – महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने गुरु और रिश्तेदारों को देखकर कहा कि उन्हें मारकर जीने से अच्छा है कि वे भिक्षाटन करें। हालाँकि, उनके प्रति लालच और बुराई के प्रभाव में, वे उनके गुरु हैं, और उनके रक्त से सफल होने पर वे कभी शांति नहीं पाएंगे।
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः॥
अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि मुझे यह भी नहीं पता कि हमें उनसे जीतना चाहिए या उनके द्वारा जीते जाना चाहिए। धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम जीना नहीं चाहेंगे, फिर भी वे सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं।
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्र्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्॥
अर्थ – अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि मैं अपनी कमजोरी के कारण अपना धैर्य खो रहा हूँ। मैं अपने कर्तव्यों को भूल गया हूँ। अब आपको बताना चाहिए कि मेरे लिए क्या सही है। अब मैं आपका शिष्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ। कृपया मुझे उपदेश दीजिये।
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-
द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्॥
अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि इस शोक से बाहर निकलने का मुझे कोई रास्ता नहीं नजर आ रहा। धरती का राजपाट प्राप्त करने से भी मैं इस शोक से नहीं बच सकूंगा।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, सफलता और असफलता की आसक्ति को छोड़कर, बिना किसी लगाव के अपने कर्म करो। यही समता की भावना योग कहलाती है।
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