संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा – Sankashti Chaturthi Vrat Katha PDF

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संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा – Sankashti Chaturthi Vrat Katha

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा – Sankashti Chaturthi Vrat Katha

भगवान गणेश को मंगलकर्ता और विघ्नहर्ता माना जाता है। किसी भी मंगल कार्य को शुरू करने से पहले भगवान गणेश का नाम लेना शुभ माना जाता है। हर महीने में दो चतुर्थी आती हैं, जिसमें शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत (Sankashti Chaturthi Vrat) को बड़े विधि विधान से पूजा करने पर भगवान गजानन की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इससे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं खत्म होती हैं। संकष्टी चतुर्थी हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाई जाती है, जो कि भगवान गणेश को समर्पित है। इस उत्सव की जानकारी को आप PDF में डाउनलोड कर सकते हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा – Sankashti Chaturthi Vrat Katha in Hindi

पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार, एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब उन्होंने मदद मांगने भगवान शिव के पास जाने का निश्चय किया। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय और गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। कार्तिकेय और गणेश जी दोनों ने इस कार्य के लिए स्वयं को सक्षम बताया।

भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करेगा। यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए चल दिए, लेकिन गणेश जी सोच में पड़ गए। उन्होंने समझा कि वह चूहे पर बैठकर संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे, तो इसमें उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी एक उपाय उनके मन में आया। गणेश जी ने अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा की और फिर अपनी जगह पर वापस बैठ गए।

जब कार्तिकेय लौटकर आए, तो उन्होंने खुद को विजेता बताया। भगवान शिव ने गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा। गणेश ने उत्तर दिया, “माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।” यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो भी उनका पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप—दैहिक, दैविक और भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रति के सभी दुख दूर होंगे और उसे जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि – Sankashti Chaturthi Pujan Vidhi

  • पर्व के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने से पहले भगवान गणेश की पूजा के लिए उनकी मूर्ति को उत्तर दिशा में एक चौकी पर रखें।
  • इसके बाद आसान ग्रहण करके गणेश भगवान की पूजा करें। पूजा के पहले भगवान गणेश को फूल, फल, रोली, पंचामृत आदि अर्पित करें।
  • धूप और दीप के साथ भगवान गणेश की पूजा करें।
  • भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। इसके बाद “ऊं सिद्ध बुद्धि महागणपति नमः” का जाप करें।
  • शाम के समय व्रत पूजा करने से पहले आपको संकष्टी व्रत कथा का पाठ करना होगा।
  • संकष्टी व्रत कथा का पाठ शुभ मुहूर्त में करना शुभ माना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन यह मुहूर्त 4:53 बजे से शुरू होता है, और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद आप व्रत समाप्त कर सकते हैं।

Ganesh Aarti – गणेश आरती

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.
एकदन्त दयावन्त, चार भुजाधारी.
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी.
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा.
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा.
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.
अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया.
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया.
सूर श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा.
महादेव की कृपा से सभी संकट दूर हों, यह प्रार्थना।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.

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