योग वशिष्ठ (Yoga Vasistha Gita Press Gorakhpur)
वशिष्ठ योग संहिता महर्षि वाल्मीकि को जिम्मेदार ठहराया गया एक दार्शनिक पाठ है, हालांकि वास्तविक लेखक वशिष्ठ हैं। पूरे पाठ में 29,000 से अधिक छंद हैं। पाठ के लघु संस्करण को लघु योगवशिष्ठ कहा जाता है और इसमें 6,000 श्लोक हैं।
इस योग वशिष्ठ गीता प्रेस PDF में आपको बहुत सी अद्भुत बातें पढ़ने को मिलेंगी। विद्वत्जनों के अनुसार सुख और दुख, जरा और मृत्यु, जीवन और जगत, जड़ और चेतन, लोक और परलोक, बंधन और मोक्ष, ब्रह्म और जीव, आत्मा और परमात्मा, आत्मज्ञान और अज्ञान, सत् और असत्, मन और इंद्रियाँ, धारणा और वासना आदि विषयों पर कदाचित् ही कोई ग्रंथ हो जिसमें ‘योग वासिष्ठ’ की अपेक्षा अधिक गंभीर चिंतन तथा सूक्ष्म विश्लेषण हुआ हो।
योग वशिष्ठ हिंदी – Yoga Vasishtha Hindi
जिस किसी का चित्त एक क्षण के लिए भी ‘आत्मतत्व’ में स्थित हो जाता है तो वह अवस्था ही उसकी अत्यंत समाधि कहलाती है। ऐसा योग वशिष्ठ में कहा गया है। जिसका भी चित्त नित्य प्रबुद्ध है। वह अपने सारे कार्य करते हुए भी आत्मतत्व का रसास्वादन करता हुआ सर्वथा ही समाधि यज्ञ है अथवा समाधि में रमा हुआ रहता है।
लेकिन जो पद्मासन मुद्रा मे स्थित होकर ब्रह्मांजली कर में लिए हुए अपने चित्त को आत्मपद में लीन नहीं कर पाते है उन्हें किसी भी समय विश्रांति नहीं मिलती और न ही समाधि में स्थित हो पाते है। जिसका चित्त सदैव शांत और समाहित नित्य तृप्त है जो सदा ही अनुभव करता है। अथवा उसे ज्यों का त्यों रूप में भान हो जाता है वही सदा सर्वदा समाधि में स्थित रहता है।
जो पुरुष अपनी जागृत अवस्था या सुप्त अवस्था में भी उस परम तत्व का सदैव चिंतन करता है। या जागृत अवस्था में अपने कार्य को करते हुए भी परम तत्व में लीन रहता है उसे ही सदा समाधिस्थ समझना चाहिए।