Yajurveda Upakarma
“वेद” भारतीय जीवन के लंबे समय तक एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। आजकल यह विचार किया जाता है कि भारतीय जीवन वेद विज्ञान से दूर है, लेकिन ‘यजुर्वेद’ एक ऐसा भाग है जो आज भी जीवन में अपनी एक ना एक रूप में स्थिति बनाए रखा है। भले ही पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बड़ा हो, लेकिन जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक, संस्कारों और कर्मकाण्डों का यह सम्बंध हमेशा बना रहता है। यजुर्वेद के अधिकांश मंत्र संस्कारों और यज्ञों से संबंधित हैं, और उनकी मंत्र शक्ति और प्रेरणा आज भी भारतीय जीवन के साथ अटूट जुड़ी हुई है।
Yajurveda (यजुर्वेद)
यजुर्वेद एक प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथ है जो वेदों का एक हिस्सा है। यह चार वेदों में से एक है, अन्य तीन हैं ऋग्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद। यजुर्वेद का अर्थ “यज्ञ का वेद” है, क्योंकि इसमें यज्ञों और कर्मकांड के विविध पहलुओं का विवरण है।
यजुर्वेद को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – “शुक्ल यजुर्वेद” और “कृष्ण यजुर्वेद”। इनमें से शुक्ल यजुर्वेद मुख्यतः पदपाठ के रूप में होता है, जबकि कृष्ण यजुर्वेद में पदों को संक्षेप में भी व्यक्त किया जाता है।
यजुर्वेद में मन्त्र, ब्राह्मण, और आरण्यक तीन प्रकार के टेक्स्ट्स होते हैं। मन्त्र वेद के सुक्ष्मतम भागों में से एक होते हैं, जो यज्ञों और पूजाओं के लिए उपयोग होते हैं। ब्राह्मण वेदीय यज्ञों के विवरण को समर्थन करते हैं, और आरण्यक वानप्रस्थाश्रम के लोगों के लिए अर्थात् वनमार्गी जीवन की शिक्षाएं देते हैं।
यजुर्वेद भारतीय साहित्य और धर्म के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह सनातन धर्म के मौलिक ग्रंथों में से एक है।
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