वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) PDF

0.83 MB / 10 Pages
0 likes
share this pdf Share
DMCA / report this pdf Report
वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)

वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)

वट सावित्री व्रत कथा PDF एक ऐसा व्रत जिसमें हिंदू धर्म में आस्था रखने वाली सभी स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं। उत्तर भारत में तो यह व्रत काफी लोकप्रिय है और दक्षिण भारत में भी कुछ राज्यों में इसकी मानता है। वट पूर्णिमा व्रत का पर्व विशेष तौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत में मनाया जाता है। ये पर्व ठीक उसी तरह से मनाया जाता है जिस तरह से उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत का पर्व मनाया जाता है। जहां वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है, वहीँ वट पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है यह व्रत रखने सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती होने का फल प्राप्त होता है तथा घर में सुख,शांति और पति की लंबी उम्र होती है।

इस व्रत की तिथि को लेकर पौराणिक ग्रंथों में भी भिन्न-भिन्न मत मिलते है। दरअसल इस व्रत को ज्येष्ठ माह की अमावस्या और इसी मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।एक और जहां निर्णयामृत के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है तो वहीं स्कंद पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण इसे ज्येषठ पूर्णिमा पर करने का निर्देश देते हैं।

वट सावित्री व्रत कथा – Vat Purnima Vrat Katha in Hindi

पौराणिक, प्रामाणिक एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लें। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिन्दू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी।

सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं।

उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी।

तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।‍सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।

तभी से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।

सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार :- यह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। उसी प्रकार महिलाओं को अपना गुरु केवल पति को ही मानना चाहिए। गुरु दीक्षा के चक्र में इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए।

वट सावित्री पूजा विधि

  • वट सावित्रि व्रत में वट यानि बरगद के वृक्ष के साथ-साथ सत्यवान-सावित्रि और यमराज की पूजा की जाती है। माना जाता है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव वास करते हैं। अतः वट वृक्ष के समक्ष बैठकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन स्त्रियों को प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिये।
  • इसके बाद रेत से भरी एक बांस की टोकरी लें और उसमें ब्रहमदेव की मूर्ति के साथ सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
  • इसी प्रकार दूस टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियाँ स्थापित करे। दोनों टोकरियों को वट के वृक्ष के नीचे रखे और ब्रहमदेव और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करें।
  • तत्पश्चात सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करे और वट वृक्ष को जल दे। वट वृक्ष की पूजा हेतु जल, फूल, रोली-मौली, कच्चा सूत, भीगा चना, गुड़ इत्यादि चढ़ाएं और जलाभिषेक करे।
  • वट वृक्ष के तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करे।
  • इसके बाद स्त्रियों को वट सावित्री व्रत की कथा सुनन चाहिए। कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकाले और उसपर कुछ रूपए रखकर अपनी सास को दे। जो स्त्रियाँ अपनी साँसों से दूर रहती है, वे बायना उन्हें भेज दे और उनका आशीर्वाद ले। पूजा समापन के पश्चात ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि दान करें।

वट सावित्री आरती

अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी सत्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।। मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।

दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।धृ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।2।।

स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।

जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती। चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।आरती वडराजा ।।4।।

पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।

पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।। स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।आरती वडराजा ।।6।।

इस वट सावित्री व्रत की में आपको निम्न्लिखित जानकारी मिल जाएगी जो कुछ इस प्रकार है:

  • वट सावित्रि व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)
  • वट सावित्रि व्रत का महत्व (Vat Savitri Vrat Importance)
  • वट सावित्रि व्रत पूजा विधि (Vat Savitri Vrat Pooja Vidhi)
  • वट सावित्रि व्रत वाले दिन क्या करें, क्या ना करें

आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha PDF में डाउनलोड कर सकते हैं। 

Download वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) PDF

Free Download
Welcome to 1PDF!