वास्तु शास्त्र पुस्तक गीता प्रेस
‘सम्पूर्ण वास्तुशास्त्र’ प्राचीन वास्तुकला को लेकर लिखी गई पहली पुस्तक है, जिसमें भवन-स्थापत्य कला पर विस्तृत चिंतन किया गया है। नए मकान का प्रवेश द्वार किधर हो ? द्वारवेध किसे कहते हैं, कितने प्रकार के होते हैं? भवन में जल स्थान (Water-tank) कहां, किधर होना चाहिए ? पाकशाला (Kitchen) में अग्नि स्थान (Fire-spot) कहां हो? शयन कक्ष (Bed-Room) किस दिशा में होना चाहिए ताकि शयनकर्त्ता को भरपूर नींद आ सके। निवास करने योग्य भूखंड की आकृति कैसी होनी चाहिए। भू-परीक्षण के क्या-क्या शास्त्रीय विधान है? सही वास्तु के मुहूर्त कैसे देखे जाते हैं? इन सभी पहलुओं पर अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान लेखक डॉ. भोजराज द्विवेदी ने व्यावहारिक चित्रों के साथ पुस्तक को बहुत ही सुंदर ढंग संवारा-संजोया है।
इंसान के जीवन को दो चीजें प्रभावित करती हैं। एक भाग्य – दूसरा वास्तु । 50% भाग्य, 50% वास्तु । अगर आपके सितारे बुलंद हैं तथा वास्तु गड़बड़ है तो प्रयास की तुलना में नतीजे आधे मिलेगे। इसके विपरीत यदि आपकी वास्तु सही दशा ठीक नहीं है तो भी उतने कष्ट नहीं झेलने पड़ते, जितने यदि दोनों ही गड़बड़ हों तो । अर्थात यदि वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार निर्माण कराए जाएं तो मुनष्य के भाग्य की स्थिति बदल सकती है।
एक सामान्य व्यक्ति को मकान- प्लाट खरीदते समय मकान का मुंह, आजू-बाजू के रास्ते, घर का दरवाजा आदि का ध्यान रखना चाहिए, द्वारवेध, मार्गवेध, कोणवेध, छायावेध, वृक्षवेध, स्तंभवेध का प्रमाणिक उल्लेख प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है।