तुलसीदास रामायण – Tulsidas Ramayan
तुलसीदास रामायण, जिसे हम रामचरितमानस के नाम से भी जानते हैं, एक अद्भुत महाकाव्य है जो १५वीं सदी के कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया था। गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना अयोध्या में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) शुरू की थी।
गोस्वामी तुलसीदास का जीवन
गोसाईं तुलसीदासजी एक सरवरिया ब्राह्मण थे और राजापुर, बांदा के रहने वाले थे। इनके गुरु का नाम नृसिंहदास था। तुलसीदास जी का जन्म संवत् १५८३ में हुआ था, जबकि कुछ स्रोत कहते हैं कि उनका जन्म संवत् १५८६ में हुआ। संवत् १६८० में गोसाईं तुलसीदासजी ने भक्तमाल में बाल्मीकि जी का अवतार लिखा है। उनकी वाणी में एक गहरी छाप है, जो हृदय में चुभती है और रामचरित्र के अमृत को कलियुग में प्रवाहित करती है।
तुलसीदास रामायण (Tulsidas Ramayan)
रामचरितमानस एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में लिखा गया। इस ग्रंथ की रचना में २ वर्ष ७ माह २६ दिन लगे और तुलसीदास जी ने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूरा किया। इसे भारतीय साहित्य की एक महान कृति माना जाता है, जिसे सामन्यतः ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ के रूप में जाना जाता है।
रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है। इसकी लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में इसे ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं। शरद नवरात्रि में, इसका सुंदरकांड पूरे नौ दिन पाठ किया जाता है। रामायण मंडलियां मंगलवार और शनिवार को इसका सुंदरकांड पाठ करती हैं।
इस ग्रंथ के नायक राम हैं, जो एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में प्रस्तुत हैं। उन्हें हरि नारायण भगवान का अवतार माना जाता है, जबकि महर्षि वाल्मीकि की रामायण में राम को एक आदर्श मानव चरित्र के रूप में दर्शाया गया है। तुलसीदास जी की लेखनी में रामचरित का अनोखा वर्णन है, जिसमें उन्होंने दोहों, चौपाइयों, सोरठों और छंदों का प्रयोग किया है।
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