स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। विवेकानन्द के पिता जी एक विचारक अति उदार गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी की माता जी भुवनेश्वरी देवी जो सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थी इनका जीवन बचपन से ही काफी संघर्ष भरा रहा है इन्होंने बहोत कम आयु में लगातार प्रयास और संघर्ष से 39 वर्ष की आयु में पूरे विश्व में छा गए थे । स्वमी विवेकानंद जी हिन्दू सभ्यता के शिरोमणि संत थे।
स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों मैं जाने के लिए पैसे नहीं थे इसीलिए नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। इस प्रकार नरेंद्र का नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।
स्वामी विवेकानंद का जन्म एवं बचपन परिचय
- स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 (विद्वानों के अनुसार मकर संक्रान्ति संवत् 1920)[6] को कलकत्ता में एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट कोलकाता स्थित स्वामी विवेकानन्द का मूल जन्मस्थान जिसका पुनरुद्धार करके अब सांस्कृतिक केन्द्र का रूप दे दिया गया है।
- दुर्गाचरण दत्ता, (नरेंद्र के दादा) संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को २५ वर्ष की आयु में छोड़ दिया और एक साधु बन गए।
- उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं।
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय इन हिन्दी
- स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर में स्थित काली मन्दिर के प्रसिद्ध पुजारी थे। स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली भेंट 1881 में हुई थी।
- दक्षिणेश्वर के इसी काली मंदिर में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के चरणों में बैठकर ईश्वर संबंधी ज्ञान पाया था। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ पाच वर्षों 1882 से लेकर 1886 तक रह सके। स्वामी विवेकानंद समाज में व्याप्त समस्याओं को जड़ से नष्ट करना चाहते थे स्वामी विवेकानंद समाज के विभिन्न समस्या पर उन्होंने अपना महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
- स्वामी विवेकानंद भारतीय समाज में व्याप्त राष्ट्रीयता छुआछूत पर कटि प्रहार किया वह उच्चव निम्न जातियों के भेद को मिटाना चाहते थे वे कहते थे तुम्हारे मन में जो ईश्वर स्थित है वही मेरे मन में भी है फिर यह भेदभाव क्यों यह समानता क्यों। जातियों द्वारा निम्न जातियों के किए जाने वाले शोषण के विरुद्ध थे। स्वामी विवेकानन्द प्रत्येक राष्ट्र को अपनी स्त्री जाति का पूरा सम्मान करना चाहिए जो राष्ट्र स्त्रियो का आदर नहीं करते वो कभी उन्नति नहीं कर पाए और न भविष्य में ही कर पाएंगे ऐसा कथन स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था।
- स्वामी विवेकानन्द जी ने स्त्रियों और धार्मिक तथा चरित्र संबंधित शिक्षा देने पर बल दिया स्वामी विवेकानंद जी ने बाल विवाह का विरोध किया बाल विवाह की आलोचना की विवेकानन्द ने समाज में रहकर हिंदू और मुस्लिम की एकता पर बल दिया स्वामी विवेकानंद ने आज समाज में फैली व्यर्थ कुरुतिया को हटाकर समाज को एक नई दिशा प्रदान करने पर बल दिया समाज में जितनी भी कुरुतिया थी उनकी कटु आलोचना की।
स्वामी विवेकानंद के विचार
- स्वामी विवेकानन्द संगीत साहित्य और दर्शन उनका शौक था स्वामी विवेकानन्द ने 25 वर्ष की आयु में ही वेद पुराण बाईबल कुरान पूंजीवाद अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र संगीत साहित्य आदि की तमाम तरह के विचारधाराओं को ग्रहण कर लिया था जैसे बड़े होते गए विवेकानंद सभी धर्म और दर्शन के प्रति अविश्वास हो गया।
- विवेकानन्द ने कहा है उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए इस कथन के माध्यम से उन्होंने भारत के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए संदेश दिया वर्तमान समय में भी विवेकानंद जी का यह संदेश युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है जो कि अब युवाओं का मूल मंत्र भी बन चुका है।