सोफी का संसार – पाश्चात्य ज़गत की दर्शन-गाथा
सोफी का संसार एक रहस्यमय और दिलचस्प उपन्यास है। यह पश्चिमी दर्शन के इतिहास और दर्शन में बुनियादी मुद्दों के विश्लेषण के बारे में एक गहन और अनोखी किताब है। प्रसिद्ध आधुनिक भारतीय दार्शनिक प्रोफेसर दयाकृष्ण का मानना है कि दो मुद्दे हैं जिन्हें सार्वभौमिक स्तर पर बुनियादी दार्शनिक मुद्दे कहा जा सकता है। पहला प्रश्न है: “मैं कौन हूँ?” दूसरा है: “यह संसार कैसे अस्तित्व में है?” अन्य दार्शनिक प्रश्न इन दो बुनियादी प्रश्नों से संबंधित हैं।
‘सोफी का संसार’ पाश्चात्य दार्शनिक जिज्ञासाओं के 2500 वर्ष लम्बे इतिहास को स्मृति, कल्पना तथा विवेक के अद्भुत संयोजन के माध्यम से प्रस्तुत करता है। सुकरात से पहले के दार्शनिकों—येल्स, ऐनेक्सीमांदर, ऐनेक्सीमेनीज, परमेनिडीज, हैरेक्लाइटस, डैमोक्रिटीस इत्यादि दार्शनिकों की चर्चा से प्रारम्भ करते हुए यह उपन्यास अफलातून (प्लेटो), अरस्तू, आगस्तीन, एक्विनाज, देकार्त, स्पिनोजा, लाइब्निज, लॉक, बर्कले, ह्यूम, कांट, हेगेल, किर्केगार्ड, माक्र्स, डारविन तथा सात्र्र तक सभी महत्त्वपूर्ण दार्शनिकों की जिज्ञासाओं तथा चिन्तन-विधियों की विश्लेषणात्मक समीक्षा प्रस्तुत करता है।
Sophie Ka Sansar Hindi book by Jostein Gaarder
इन प्रश्नों से पाठक का परिचय उपन्यास के पहले ही अध्याय में एक रहस्यात्मक और रोचक प्रसंग के माध्यम से हो जाता है। किसी जटिल सैद्धान्तिक रूप में प्रस्तुत करने के बजाय 14-15 वर्ष की किशोरी सोफी को दैनिक जीवन के व्यावहारिक स्तर पर इन प्रश्नों को पूछने के लिए प्रेरित किया गया है।