
महाशिवरात्रि व्रत कथा (Maha Shivratri 2025 Vrat Katha)
हिंदू पंचांग के अनुसार,फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने मासिक शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन साल के फाल्गुन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. इस दिन शिव के भक्त भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा और व्रत करते हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करना सबसे आसान है। जो भक्त सच्चे मन से इनकी अराधना करता है उस पर कभी कोई संकट नहीं आता है। महाशिवरात्रि का दिन शिव अराधना के लिए सबसे उत्तम माना गया है। फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि इस बार 8 मार्च के दिन पड़ी है। जानिए इस खास पर्व की पूजा विधि, सामग्री, मंत्र और सभी जानकार
Maha Shivratri 2025 Vrat Katha, Puja Vidhi, Muhurat, Mantra, Samagri List
Mahashivratri Vrat Katha (महाशिवरती व्रत कथा हिन्दी में) शिवरात्रि व्रत कथा
महाशिवरात्रि’ के विषय में भिन्न – भिन्न मत हैं, कुछ विद्वानों का मत है कि आज के ही दिन शिवजी और माता पार्वती विवाह-सूत्र में बंधे थे जबकि अन्य कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं कि आज के ही दिन शिवजी ने ‘कालकूट’ नाम का विष पिया था जो सागरमंथन के समय समुद्र से निकला था। ज्ञात है कि यह समुद्रमंथन देवताओं और असुरों ने अमृत-प्राप्ति के लिए किया था। एक शिकारी की कथा भी इस त्यौहार के साथ जुड़ी हुई है कि कैसे उसके अनजाने में की गई पूजा से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उस पर अपनी असीम कृपा की थी। यह कथा पौराणिक “शिव पुराण” में भी संकलित है …
प्राचीन काल में, किसी जंगल में एक गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार करता तथा अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था |एक बार शिव-रात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए निकला , पर संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार न मिला, उसके बच्चों, पत्नी एवं माता-पिता को भूखा रहना पड़ेगा इस बात से वह चिंतित हो गया , सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया और वहां एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर, चढ़ गया क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ ज़रूर आयेगा |वह पेड़ ‘बेल-पत्र’ का था और उसी पेड़ के नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था ।
रात का पहला प्रहर बीतने से पहले एक हिरणी वहां पर पानी पीने के लिए आई उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा ऐसा करने में, उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा हो गयी |हिरणी ने जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी, तो घबरा कर ऊपर की ओर देखा और भयभीत हो कर, शिकारी से , कांपते हुए स्वर में बोली- ‘मुझे मत मारो ।’ शिकारी ने कहा कि वह और उसका परिवार भूखा है इसलिए वह उसे नहीं छोड़ सकता |
हिरणी ने वादा किया कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आयेगी| तब वह उसका शिकार कर ले । शिकारी को उसकी बात का विश्वास नहीं हो रहा था |उसने फिर से शिकारी को यह कहते हुए अपनी बात का भरोसा करवाया कि जैसे सत्य पर ही धरती टिकी है; समुद्र मर्यादा में रहता है और झरनों से जल-धाराएँ गिरा करती हैं वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है । क्रूर होने के बावजूद भी, शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने ‘जल्दी लौटना’ कहकर , उस हिरनी को जाने दिया ।
थोड़ी ही देर बाद एक और हिरनी वहां पानी पीने आई, शिकारी सावधान हो गया, तीर सांधने लगा और ऐसा करते हुए, उसके हाथ के धक्के से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी । इस हिरनी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर ,हिरनी ने उसे लौट आने का वचन, यह कहते हुए दिया कि उसे ज्ञात है कि जो वचन दे कर पलट जाता है ,उसका अपने जीवन में संचित पुण्य नष्ट हो जाया करता है । उस शिकारी ने पहले की तरह, इस हिरनी के वचन का भी भरोसा कर उसे जाने दिया ।
अब तो वह इसी चिंता से व्याकुल हो रहा था कि उन में से शायद ही कोई हिरनी लौट के आये और अब उसके परिवार का क्या होगा |इतने में ही उसने जल की ओर आते हुए एक हिरण को देखा, उसे देखकर शिकारी बड़ा प्रसन्न हुआ ,अब फिर धनुष पर बाण चढाने से उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी लेकिन पत्तों के गिरने की आवाज़ से वह हिरन सावधान हो गया । उसने शिकारी को देखा और पूछा –“ तुम क्या करना चाहते हो ?” वह बोला-“अपने कुटुंब को भोजन देने के लिए तुम्हारा वध करूंगा ।”
वह मृग प्रसन्न हो कर कहने लगा – “मैं धन्य हूँ कि मेरा यह शरीर किसी के काम आएगा, परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा पर कृपया कर अभी मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप कर और उन सबको धीरज बंधा कर यहाँ लौट आऊं ।” शिकारी का ह्रदय, उसके पापपुंज नष्ट हो जाने से अब तक शुद्ध हो गया था इसलिए वह विनयपूर्वक बोला –‘ जो-जो यहाँ आये ,सभी बातें बनाकर चले गये और अभी तक नहीं लौटे ,यदि तुम भी झूठ बोलकर चले जाओगे ,तो मेरे परिजनों का क्या होगा ?” अब हिरन ने यह कहते हुए उसे अपने सत्य बोलने का भरोसा दिलवाया कि यदि वह लौटकर न आये; तो उसे वह पाप लगे जो उसे लगा करता है जो सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरे का उपकार नहीं करता । शिकारी ने उसे भी यह कहकर जाने दिया कि ‘शीघ्र लौट आना ।’
रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होते ही उस शिकारी के हर्ष की सीमा न थी क्योंकि उसने उन सब हिरन-हिरनियों को अपने बच्चों सहित एकसाथ आते देख लिया था । उन्हें देखते ही उसने अपने धनुष पर बाण रखा और पहले की ही तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव-पूजा संपन्न हो गयी । अब उस शिकारी के शिव कृपा से सभी पाप भस्म हो गये इसलिए वह सोचने लगा-‘ओह, ये पशु धन्य हैं जो ज्ञानहीन हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को कि मैं अनेक प्रकार के कुकृत्यों से अपने परिवार का पालन करता रहा ।’ अब उसने अपना बाण रोक लिया तथा मृगों से कहा की वे सब धन्य है तथा उन्हें वापिस जाने दिया । उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर “गुह’’ नाम प्रदान किया । मित्रों, यही वह गुह था जिसके साथ भगवान् श्री राम ने मित्रता की थी ।
शिव जी जटाओं में गंगाजी को धारण करने वाले, सिर पर चंद्रमा को सजाने वाले,मस्तक पर त्रिपुंड तथा तीसरे नेत्र वाले ,कंठ में कालपाश [नागराज] तथा रुद्रा- क्षमाला से सुशोभित , हाथ में डमरू और त्रिशूल है जिनके और भक्तगण बड़ी श्रद्दा से जिन्हें शिवशंकर, शंकर, भोलेनाथ, महादेव, भगवान् आशुतोष, उमापति, गौरीशंकर, सोमेश्वर, महाकाल, ओंकारेश्वर, वैद्यनाथ, नीलकंठ, त्रिपुरारि, सदाशिव तथा अन्य सहस्त्रों नामों से संबोधित कर उनकी पूजा-अर्चना किया करते हैं —– ऐसे भगवान् शिव एवं शिवा हम सबके चिंतन को सदा-सदैव सकारात्मक बनायें एवं सबकी मनोकामनाएं पूरी करें ।
महाशिवरात्री पूजा विधि
- पूजा करने से पहले अपने माथे पर त्रिपुंड लगाएं। इसके लिए चंदन या विभूत तीन उंगलियों पर लगाकर माथे के बायीं तरफ से दायीं तरफ की तरफ त्रिपुंड लगाएं।
- शिवलिंग का दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें। आप चाहे तो खाली जल से भी शिव का अभिषेक कर सकते हैं।
- अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जप करते रहना चाहिए।
- शिव को बेलपत्र, आक-धतूरे का फूल, चावल, भांग, इत्र जरूर चढ़ाएं।
- चंदन का तिलक लगाएं।
- धूप दीपक जलाएं। शिव के मंत्रों का जाप करें। शिव चालीसा पढ़ें।
- खीर और फलों का भोग लगाएं। शिव आरती उतारें। संभव हो तो रात्रि भर जागरण करें। घर के पास शिव मंदिर नहीं है तो आप घर पर ही मिट्टी के शिवलिंग बनाकर उनका पूजन कर सकते हैं।
महाशिवरती पूजा मुहूर्त 2025
साल 2025 में महा शिवरात्रि 26 फरवरी के दिन बुधवार को को मनाई जाएगी। शिवरात्रि की तिथि दूसरे दिन यानि 27 फरवरी दिन को 12:09 बजे से 12:59 बजे तक होगी।
ब्रह्म मुहूर्त में पूजा का मुहूर्त | 26 फरवरी सुबह 05:17 से 06:05 तक रहेगा. |
पहले प्रहर की पूजा का समय | 26 फरवरी शाम 06:29 से रात 09:34 तक है. |
दूसरे प्रहर की पूजा का समय | 26 फरवरी रात 09:34 से मध्यरात्रि 12 :39 तक रहेगा. |
तीसरे प्रहर की पूजा का समय | 26 फरवरी की रात 12 :39 से 03:45 तक है. |
चौथे प्रहर की पूजा का समय | 27 फरवरी सुबह 03:45 से 06: 50 तक है. |
मंत्र: ऊं त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
महाशिवरती व्रत सामग्री लिस्ट
- बेलपत्र,
- भांग,
- धतूरा,
- गाय का शुद्ध कच्चा दूध,
- चंदन,
- रोली,
- केसर,
- भस्म,
- कपूर,
- दही,
- मौली यानी कलावा,
- अक्षत् (साबुत चावल),
- शहद,
- मिश्री,
- धूप,
- दीप,
- साबुत हल्दी,
- नागकेसर,
- पांच प्रकार के फल,
- गंगा जल,
- वस्त्र,
- जनेऊ,
- इत्र,
- कुमकुम,
- पुष्पमाला,
- शमी का पत्र,
- खस,
- लौंग,
- सुपारी,
- पान,
- रत्न-आभूषण,
- इलायची,
- फूल,
- आसन,
- पार्वती जी के श्रंगार की सामग्री,
- पूजा के बर्तन और दक्षिणा।
- इन सब चाजों का प्रबंध एक दिन पहले ही कर लें।
महाशिवरात्रि का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव लिंग के स्वरुप में प्रकट हुए थे। इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान सदाशिव ने परम ब्रह्म स्वरुप से साकार रूप धारण किया था। महाशिवरात्रि पर अविवाहित कन्याएं पूरे दिन उपवास रखते हुए शिव आराधना में लीन रहती है और भगवान शिव से योग्य वर की प्राप्ति के लिए कामना करती है। इसके साथ ही वैवाहिक जीवन जी रहे लोगों की जिंदगी में भी खुशियां बनी रहती हैं.महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से सभी तरह के सुख और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
ॐ नमः शिवाय का जाप
महाशिवरात्रि के दिन शिवपुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए. इसके साथ ही इस दिन रात्रि जागरण का भी विधान है. शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि का पूजा निशील काल में करना उत्तम माना गया है.
शिव जी आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
Maha Shivrati Vrat Katha – महाशिवरात्रि व्रत कथा | शिवरात्रि व्रत कथा
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