Shiva Mahapuran (शिव पुराण)
शिव महापुराण (शिव पुराण) में भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का समग्र वर्णन किया गया है। यह प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में लिखा गया है और इसमें भगवान शिव को पंचदेवों में सबसे प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर माना गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के साथ-साथ इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुंदर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव – जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विस्तृत विवरण दिया गया है।
शिव महापुराण का विशेष महत्व
‘शिव पुराण’ का संबंध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य और करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले और मनोवांछित फल देने वाले हैं। इसके अलावा, ‘शिव पुराण’ शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष जानकारी भी प्रदान करता है।
Shiva Mahapuran (शिव पुराण हिन्दी में)
शिवपुराण एक प्रमुख और सुप्रसिद्ध पुराण है, जिसमें परात्मपर परब्रह्म परमेश्वर के ‘शिव’ (कल्याणकारी) स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का सुविस्तृत वर्णन है। भगवान शिव सिर्फ पौराणिक देवता नहीं हैं, बल्कि वे पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं। निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महादेव का गुणगान किया गया है। वेदों ने इस परमतत्त्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्वपंच का स्रष्टा, पालक एवं संहारक बताया है।
श्रुतियों ने हमेशा शिव को स्वयम्भू, शान्त, प्रपंचातीत और परमतत्त्व कहा है। ‘शिव’ का अर्थ ही है- ‘कल्याणस्वरूप’ और ‘कल्याणप्रदाता’। परमब्रह्म के इस कल्याण रूप की उपासना उच्च श्रेणी के सिद्धों, आत्मकल्याण के इच्छुक साधकों और सामान्य आस्तिक जनों के लिए परम मंगलमय और कल्याणकारी है।
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा-विष्णु तक इन महादेव की उपासना करते हैं। इस पुराण के अनुसार यह पुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस धरती पर भगवान शिव का वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिए और सभी प्रकार से इसका सेवन करना चाहिए। इसके पठन और श्रवण को सभी साधना रूप मानते हैं।
शिव भक्ति से युक्त व्यक्ति शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है। इसलिए लोग इस पुराण को पढ़ने की इच्छा रखते हैं और इसके अध्ययन को महत्वपूर्ण साधन मानते हैं। इसे प्रेमपूर्वक श्रवण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और इस जीवन में बड़े-बड़े भोगों का आनंद लेकर अंत में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है। यह शिवपुराण नामक ग्रंथ चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है। सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सभी को उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है।
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