शनि आरती – Shani Aarti PDF

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शनि आरती - Shani Aarti

शनि आरती – Shani Aarti

भगवान शनिदेव को दंडाधिकारी माना जाता है। मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल देने वाले शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र माने जाते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग शनि मंदिरों में तेल चढ़ाते हैं। साथ ही शनिदेव की चालीसा, मंत्रों और आरती का पाठ करते हैं।

धर्म व न्याय के प्रतीक शनिदेव को ही सुख-संपत्ति, वैभव और मोक्ष देने वाला ग्रह माना जाता है। मान्यता है कि धर्मराज होने की वजह से प्राय: शनि पापी व्यक्तियों के लिए दुख और कष्टकारक होता है, लेकिन ईमानदारों के लिए यह यश, धन, पद और सम्मान का ग्रह है। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।

शनिदेव जी की आरती – Shani Dev Aarti Lyrics

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥

जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

जय जय श्री शनि देव….

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

जय जय श्री शनि देव….

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

Shani Aarti

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