सत्यनारायण व्रत – Satyanarayan Vrat Katha PDF

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सत्यनारायण व्रत – Satyanarayan Vrat Katha

सत्यनारायण व्रत – Satyanarayan Vrat Katha

सत्यनारायण पूजा हिंदू भगवान विष्णु की एक धार्मिक अनुष्ठान पूजा है। मध्यकालीन युग के संस्कृत पाठ स्कंद पुराण में पूजा का वर्णन किया गया है। माधुरी यदलपति के अनुसार, सत्यनारायण पूजा इस बात का एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे “हिंदू पूजा एक बड़े पवित्र दुनिया में कृतज्ञतापूर्वक भाग लेने की विनम्र भावना को सक्षम करते हुए भक्ति पूजा की अंतरंगता की सुविधा प्रदान करती है”।

सत्यनारायण व्रत-पूजनकर्ता पूर्णिमा या संक्रांति के दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके सत्यनारायण भगवान का पूजन करें। इसके पश्चात्‌ सत्यनारायण व्रत कथा का वाचन अथवा श्रवण करें।

पवित्रकरण

बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें

मंत्र

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।

आसन

निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌ ॥

ग्रंथि बंधन

यदि यजमान सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-
ॐ यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्‌ ॥

आचमन

इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-

1. ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
2. ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,3. माधवाय नमः स्वाहा ।

यह बोलकर हाथ धो लें-
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

सत्यनारायण व्रत कथा प्रथमोऽध्यायः (संस्कृत में)

व्यास उवाच
एकदा नैमिषारण्ये ऋषयः शौनकादयः ।
प्रपच्छुर्मुनयः सर्वे सूतं पौराणिकं खलु ॥1॥

ऋषय उवाच
व्रतेन तपसा किं वा प्राप्यते वांछितं फलम्‌ ।
तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामः कथयस्व महामुने ॥2॥

सूत उवाच
नारदेनैव संपृष्टो भगवान्कमलापतिः ।
सुरर्षये यथैवाह तच्छृणुध्वं समाहिताः ॥3॥

हिन्दी अर्थ:- श्री व्यासजी ने कहा- एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनक आदि हजारों ऋषि-मुनियों ने पुराणों के महाज्ञानी श्री सूतजी से पूछा कि वह व्रत-तप कौन सा है, जिसके करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। हम सभी वह सुनना चाहते हैं। कृपा कर सुनाएँ। श्री सूतजी बोले- ऐसा ही प्रश्न नारद ने किया था। जो कुछ भगवान कमलापति ने कहा था, आप सब उसे सुनिए।

एकदा नारदो योगी परानुग्रहकांक्षया ।
पर्यटन्विविधाँल्लोकान्मर्त्यलोकमुपागतः ॥4॥

ततो दृष्ट्वा जनान्सर्वान्नानाक्लेशसमन्वितान्‌ ।
नानायोनि समुत्पान्नान्‌ क्लिश्यमानान्स्वकर्मभिः ॥5॥

केनोपायेन चैतेषां दुःखनाशो भवेद्ध्रुवम्‌ ।
इति संचिन्त्य मनसा विष्णुलोकं गतस्तदा ॥6॥

तत्र नारायणंदेवं शुक्लवर्णचतुर्भुजम्‌ ।
शंख चक्र गदा पद्म वनमाला विभूषितम्‌ ॥7॥

हिन्दी अर्थ:- परोपकार की भावना लेकर योगी नारद कई लोकों की यात्रा करते-करते मृत्यु लोक में आ गए। वहाँ उन्होंने देखा कि लोग भारी कष्ट भोग रहे हैं। पिछले कर्मों के प्रभाव से अनेक योनियों में उत्पन्न हो रहे हैं। दुःखीजनों को देख नारद सोचने लगे कि इन प्राणियों का दुःख किस प्रकार दूर किया जाए। मन में यही भावना रखकर नारदजी विष्णु लोक पहुँचे। वहाँ नारदजी ने चार भुजाधारी सत्यनारायण के दर्शन किए, जिन्होंने शंख, चक्र, गदा, पद्म अपनी भुजाओं में ले रखा था और उनके गले में वनमाला पड़ी थी।

नारद उवाच
नमोवांगमनसातीत- रूपायानंतशक्तये ।
आदिमध्यांतहीनाय निर्गुणाय गुणात्मने ॥8॥

सर्वेषामादिभूताय भक्तानामार्तिनाशिने ।
श्रुत्वा स्तोत्रंततो विष्णुर्नारदं प्रत्यभाषत्‌ ॥9॥

श्रीभगवानुवाच
किमर्थमागतोऽसि त्वं किंते मनसि वर्तते ।
कथायस्व महाभाग तत्सर्वं कथायमिते ॥10॥

नारद उवाच
मर्त्यलोके जनाः सर्वे नानाक्लेशसमन्विताः ।
ननायोनिसमुत्पन्नाः पच्यन्ते पापकर्मभिः ॥11॥

हिन्दी अर्थ:-नारदजी ने स्तुति की और कहा कि मन-वाणी से परे, अनंत शक्तिधारी, आपको प्रणाम है। आदि, मध्य और अंत से मुक्त सर्वआत्मा के आदिकारण श्री हरि आपको प्रणाम। नारदजी की स्तुति सुन विष्णु भगवान ने पूछा- हे नारद! तुम्हारे मन में क्या है? वह सब मुझे बताइए। भगवान की यह वाणी सुन नारदजी ने कहा- मर्त्य लोक के सभी प्राणी पूर्व पापों के कारण विभिन्न योनियों में उत्पन्न होकर अनेक प्रकार के कष्ट भोग रहे हैं।
तत्कथं शमयेन्नाथ लघूपायेन तद्वद् ।
श्रोतुमिच्छामि तत्सर्वं कृपास्ति यदि ते मयि ॥12॥

श्रीभगवानुवाच
साधु पृष्टं त्वया वत्स लोकानुग्रहकांक्षया ।
यत्कृत्वा मुच्यते मोहत्तच्छृणुष्व वदामि ते ॥13॥

व्रतमस्ति महत्पुण्यं स्वर्गे मर्त्ये च दुर्लभम्‌ ।
तव स्नेहान्मया वत्स प्रकाशः क्रियतेऽधुना ॥14॥

हिन्दी अर्थ:- यदि आप मुझ पर कृपालु हैं तो इन प्राणियों के कष्ट दूर करने का कोई छोटा-सा उपाय बताएँ। मैं वह सुनना चाहता हूँ। श्री भगवान बोले हे नारद! तुम साधु हो। तुमने जन-जन के कल्याण के लिए अच्छा प्रश्न किया है। जिस व्रत के करने से व्यक्ति मोह से छूट जाता है, वह मैं तुम्हें बताता हूँ। यह व्रत स्वर्ग और मृत्यु लोक दोनों में दुर्लभ है। तुम्हारे स्नेहवश में इस व्रत का विवरण देता हूँ।

सत्यनारायणस्यैवं व्रतं सम्यग्विधानतः ।

कृत्वा सद्यः सुखं भुक्त्वा परत्र मोक्षमाप्युयात्‌ ।
तच्छुत्वा भगवद्वाक्यं नारदो मुनिरब्रवीत्‌ ॥15॥

नारद उवाच
किं फलं किं विधानं च कृतं केनैव तद्व्रतम्‌ ।
तत्सर्वं विस्तराद् ब्रूहि कदा कार्यं हि तद्व्रतम्‌ ॥16॥

श्रीभगवानुवाच
दुःखशोकादिमनंधनधान्यप्रवर्धनम्‌ ॥17॥
सौभाग्यसन्ततिकरं सर्वत्रविजयप्रदम्‌ ।
यस्मिन्कस्मिन्दिने मर्त्यो भक्ति श्रद्धासमन्वितः ॥18॥

हिन्दी अर्थ:-सत्यनारायण का व्रत विधिपूर्वक करने से तत्काल सुख मिलता है और अंततः मोक्ष का अधिकार मिलता है। श्री भगवान के वचन सुन नारद ने कहा कि प्रभु इस व्रत का फल क्या है? इसे कब और कैसे धारण किया जाए और इसे किस-किस ने किया है। श्री भगवान ने कहा दुःख-शोक दूर करने वाला, धन बढ़ाने वाला। सौभाग्य और संतान का दाता, सर्वत्र विजय दिलाने वाला श्री सत्यनारायण व्रत मनुष्य किसी भी दिन श्रद्धा भक्ति के साथ कर सकता है।

सत्यनारायणं देवं यजेच्चैव निशामुखे ।
ब्राह्मणैर्बान्धवैश्चैव सहितो धर्मतत्परः ॥19॥

नैवेद्यं भक्तितो दद्यात्सपादं भक्ष्यमुत्तमम्‌ ।
रंभाफलं घृतं क्षीरं गोधूममस्य च चूर्णकम्‌ ॥20॥

अभावेशालिचूर्णं वा शर्करा वा गुडस्तथा ।
सपादं सर्वभक्ष्याणि चैकीकृत्य निवेदयेत्‌ ॥21॥

विप्राय दक्षिणां दद्यात्कथां श्रुत्वाजनैः सह ।
ततश्चबन्धुमिः सार्धं विप्रांश्च प्रतिभोजयेत्‌ ॥22॥

हिन्दी अर्थ:-सायंकाल धर्मरत हो ब्राह्मण के सहयोग से और बंधु बांधव सहित श्री सत्यनारायण का पूजन करें। भक्तिपूर्वक खाने योग्य उत्तम प्रसाद (सवाया) लें। यह प्रसाद केले, घी, दूध, गेहूँ के आटे से बना हो। यदि गेहूँ का आटा न हो, तो चावल का आटा और शकर के स्थान पर गुड़ मिला दें। सब मिलाकर सवाया बना नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद कथा सुनें, प्रसाद लें, ब्राह्मणों को दक्षिणा दें और इसके पश्चात बंधु-बांधवों सहित ब्राह्मणों को भोजन कराएँ।
प्रसादं भक्षयभ्दक्त्या नृत्यगीतादिकं चरेत्‌ ।
ततश्च स्वगृहं गच्छेत्सत्यनारायणं स्मरन्‌ ॥23॥

एवंकृते मनुष्याणां वांछासिद्धिर्भवेद् ध्रुवम्‌ ।
विशेषतः कलियुगे लघूपायऽस्ति भूतले ॥24॥

हिन्दी अर्थ:-प्रसाद पा लेने के बाद कीर्तन आदि करें और फिर भगवान सत्यनारायण का स्मरण करते हुए स्वजन अपने-अपने घर जाएँ। ऐसे व्रत-पूजन करने वाले की मनोकामना अवश्य पूरी होगी। कलियुग में विशेष रूप से यह छोटा-सा उपाय इस पृथ्वी पर सुलभ है।

॥ इति श्रीस्कन्द पुराणे रेवाखण्डे ॥

सत्यनारायण व्रत कथायां प्रथमोऽध्यायः समाप्तः ॥

Satyanarayan Vrat Puja Vidhi – सत्यनारायण व्रत पूजा विधि

  • पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएं और उस पर पूजा की चौकी रखें।
  • इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाएं। इस चौकी पर शालिग्राम या ठाकुर जी या श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें।
  • पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें।
  • इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें।
  • पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें।
  • पुरोहित जी को दक्षिणा एवं वस्त्र दे व भोजन कराएं। पुराहित जी के भोजन के पश्चात उनसे आशीर्वाद लेकर आप स्वयं भोजन करें।

श्री सत्यनारायण पूजा सामग्री – Satyanarayan Vrat Puja Samagri

  1. पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है।
  2. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद (पसन्द) है।
  3. इन्हें प्रसाद के तौर पर फल, मिष्टान्न के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू ( पंजीरी ) कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।

सत्यनारायण व्रत – Satyanarayan Vrat Katha Sanskrit

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