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संस्कृत साहित्य का इतिहास
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संस्कृत साहित्य का इतिहास

संस्कृत साहित्य का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसका विकास विभिन्न कालों में हुआ है। संस्कृत साहित्य का इतिहास एक विशाल और समृद्ध विषय है, जिसमें विभिन्न कालों में विभिन्न शैलियों और विचारों का प्रकटीकरण हुआ है।

संस्कृत साहित्य का इतिहास – पांच मुख्य काल

  1. वैदिक काल (अथर्ववेदीय काल): संस्कृत साहित्य का आदिकाल वैदिक काल माना जाता है, जिसमें वेदों का रचनात्मक विकास हुआ। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद इस काल की मुख्य साहित्यिक रचनाएँ हैं।
  2. पाणिनी काल (ग्राम्मरीय काल): इस काल में पाणिनि ने “अष्टाध्यायी” नामक व्याकरण सूत्र रचा, जो संस्कृत भाषा के व्याकरण का मौलिक ग्रंथ है।
  3. साहित्यिक काल (काव्य काल): संस्कृत साहित्य का सर्वाधिक उज्जवल काल काव्य काल माना जाता है। इस काल में कवियों ने महाकाव्य, काव्य, नाटक, उपन्यास, और और विभिन्न काव्य रचनाओं का रचनात्मक योगदान किया। कालिदास, भारवि, भवभूति, कालिदास, और आश्वघोष इस काल के प्रमुख कवि हैं।
  4. मध्यकाल (शास्त्रीय काल): इस काल में संस्कृत साहित्य का विकास धीरे-धीरे कम हो गया, और शास्त्रीय ग्रंथों का विकास हुआ। ग्रंथों में धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, कामशास्त्र, और अन्य विषयों पर ज्ञान दिया गया।
  5. आधुनिक काल (अद्भुत काल): यह काल संस्कृत साहित्य का आधुनिक युग है, जिसमें संस्कृत साहित्य के अनेक प्रकार के ग्रंथों का निर्माण हुआ है। इस काल में संस्कृत साहित्य में नाट्यकला, लघुकथाएँ, कथासाहित्य, गद्यकाव्य, और अन्य विभिन्न विधाओं का विकास हुआ है।

संस्कृत-साहित्य का महत्व

निस्सन्देह संस्कृत साहित्य का महत्व बहुत बड़ा है । इसकी बड़ी उम्र, एक बहुत बड़े भूख पर इसका फैला हुथा होना, इसका परिमाण, इसकी सम्पत्ति, इसकी रचना-चाता, संस्कृति के इतिहास की दृष्टि से इसका मूल्य ऐसी बातें हैं जिनके कारण इस महान्, मौलिक और पुरातन साहित्य के ऊपर हमारा अनुराग बिलकुल उचित सिद्ध होता है।

कुछ बातें और भी हैं, जिनके कारण संस्कृत साहित्य के अध्ययन में हमारी अभिरुचि और भी बढ़ जाती है। उनमें से कुछ विशेष नीचे दी जाती हैं–

संस्कृत-साहित्य का अध्ययन ऐतिहासिकों के बड़े काम का है । यह विस्तृव भारतवर्ष के निवासियों के बुद्धि-जगत् के तीन हजार से भी अधिक वर्षों का इतिहास ही नहीं है प्रत्युत उत्तर में तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया, दक्षिण में लंका, पूर्व में मलाया, प्रायद्वीप, सुमाना, जावा, यावी, चोनियो तथा प्रशांत महासागर के दूसरे द्वीप; और पश्चिम में प्रग़ानिस्तान, तुर्कस्तान इत्यादि देशों के बौद्धिक जगत् पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव भी पड़ा है ।

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