सम्भोग से समाधि की ओर
संभोग से समाधि की और में, वह यह भी बताते हैं कि कितने लोग काम से नहीं बच सकते हैं और लोगों को इससे नहीं लड़ना चाहिए, क्योंकि यह जीवन की सहायक संरचना है। वह उन पापों के बारे में भी विस्तार से बताता है जिन्हें लोग अक्सर महसूस नहीं करते हैं कि भगवान पापों के बारे में सोचते हैं। पुस्तक को डायमंड बुक्स द्वारा 1999 में प्रकाशित किया गया था और यह पेपरबैक में उपलब्ध है।
ओशो कहते थे कि जो कौम बिना कुछ किए बिना पैसे कमाना चाहती है, वो कौम खतरनाक है। ओशो कहा करते थे कि जो आदमी एक रुपए लगाकर बिना कुछ किए एक लाख पाने की चाहत रखता है वो एक अपराधी के समान है। ओशो का कहना था कि धन की चाह जरूर रखनी चाहिए लेकिन उसके लिए व्यक्ति का सृजनात्मक होना बेहद जरूरी है। ओशो के अनुसार, एक सभ्य समाज के लिए धन की बहुत ज़्यादा आश्यकता है। इससे सभ्यता को आगे बढ़ने का मौका मिलता है अन्यथा हम भी जंगलों में भटकते रहते। ओशो कहते हैं कि धन मनुष्य के जीवन में सब कुछ नहीं है लेकिन इसके माध्यम से हम जीवन में सब कुछ खरीद सकते हैं। धन कमाने के लिए सबसे अच्छा जरिया है कि हम एक लक्ष्य तय कर लें और सही तरीके से धन को कमाना अपना ध्येय बना लें। ओशो कहते हैं कि जो व्यक्ति धन को फिजूल बताता है और उसकी निन्दा करता है, उसके अंदर धन कमाने की आकांक्षा समाप्त हो जाती है और वो सफलता पाने से चुक जाता है।
प्रवचन-क्रम (सम्भोग से समाधि की ओर)
- संभोग : परमात्मा की सृजन-ऊर्जा ….. 2
- संभोग : अहं-शून्यता की झलक ….. 21
- संभोग : समय-शून्यता की झलक ….. 39
- समाधि : अहं-शून्यता, समय-शून्यता का अनुभव ….. 56
- समाधि : संभोग-ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन ….. 70
- यौन : जीवन का ऊर्जा – आयाम ….. 91
- युवक और यौन ….. 110
- प्रेम और विवाह ….. 123
- जनसंख्या विस्फ़ोट ….. 139
- विद्रोह क्या है ….. 163
- युवक यौन ….. 183
- युवा चित्त का जन्म ….. 195
- नारी और क्रांति ….. 214
- नारी–एक और आयाम ….. 229
- सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति ….. 245
- भीड़ से, समाज से–दूसरों से मुक्ति ….. 257
- दमन से मुक्ति ….. 272
- न भोग, न दमन–वरन जागरण ….. 285