समास – Samas
समास, जिसका अर्थ है ‘छोटा – रूप’, हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। समास दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने एक नए और सार्थक शब्द को कहते हैं। यह न केवल व्याकरण में बल्कि विभिन्न प्रकार की रचनाओं में भी विशेष स्थान रखता है।
समास की परिभाषा और महत्व
समास के द्वारा बनने वाले शब्दों को सामासिक शब्द या समस्तपद कहा जाता है। जब समास बनता है, तो विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) समाप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, ‘राजपुत्र’ एक सामासिक शब्द है। समास-विग्रह वह क्रिया है जिसमें सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट किया जाता है। जैसे- विद्यालय को ‘विद्या के लिए आलय’ और माता-पिता को ‘माता और पिता’ के रूप में विग्रहित किया जा सकता है।
समास के प्रकार – Samas Bhed in Hindi
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- द्विगु
- द्वन्द्व
- बहुव्रीहि
- कर्मधारय
अव्ययीभाव
अव्ययीभाव समास में जब पूर्व पद प्रधान हो और वह अव्यय हो, तब इसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। उदाहरण के लिए: यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक)। इनमें ‘यथा’ और ‘आ’ अव्यय हैं। इसी तरह अन्य उदाहरण हैं:
- आजीवन – जीवन-भर
- यथासामर्थ्य – सामर्थ्य के अनुसार
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- यथाविधि – विधि के अनुसार
- यथाक्रम – क्रम के अनुसार
- भरपेट – पेट भरकर
- हररोज़ – रोज़-रोज़
- हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में
तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है और पूर्वपद गौण होता है। उदाहरण के लिए, ‘तुलसीदासकृत’ का अर्थ है ‘तुलसीदास द्वारा रचित’।
ज्ञातव्य – विग्रह में जो कारक प्रकट होता है, वही कारक वाला समास होता है। तत्पुरुष समास के छह भेद हैं:
- कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट – गिरह को काटने वाला)
- करण तत्पुरुष (मनचाहा – मन से चाहा)
- संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर – रसोई के लिए घर)
- अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला – देश से निकाला)
- संबंध तत्पुरुष (गंगाजल – गंगा का जल)
द्वन्द्व समास
( i ) द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।
( ii ) दोनों पद प्रायः एक-दूसरे के विलोम होते हैं, लेकिन यह हमेशा नहीं होता।
(iii) इसका विग्रह करने पर ‘और’, अथवा ‘या’ का प्रयोग होता है।
उदाहरण:
- माता – पिता → माता और पिता
- दाल – रोटी → दाल और रोटी
- पाप – पुण्य → पाप या पुण्य / पाप और पुण्य
- अन्न – जल → अन्न और जल
- जलवायु → जल और वायु
- फल – फूल → फल और फूल
बहुब्रीहि समास
( i ) बहुव्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता।
( ii ) इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता होती है।
( iii ) इसका विग्रह करने पर ‘वाला, है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह’ आदि आते हैं।
उदाहरण:
- गजानन → गज का आनन है जिसका वह (गणेश)
- त्रिनेत्र → तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)
- चतुर्भुज → चार भुजाएँ हैं जिसकी वह (विष्णु)
द्विगु समास
( i ) द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है।
( ii ) इसमें प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है, जैसा कि बहुव्रीहि समास में देखा गया है।
( iii ) इसका विग्रह करने पर समूह ‘या’ समाहार शब्द प्रयुक्त होता है।
उदाहरण:
- दोराहा → दो राहों का समाहार
- पक्षद्वय → दो पक्षों का समूह
- सम्पादक द्वय → दो सम्पादकों का समूह
कर्मधारय समास
( i ) कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है, दूसरा पद विशेष्य।
( ii ) इसमें कहीं-कहीं उपमेय उपमान का संबंध होता है तथा विग्रह करने पर ‘रूपी’ शब्द प्रयुक्त होता है।
उदाहरण:
- पुरुषोत्तम → पुरुष जो उत्तम
- नीलकमल → नीला जो कमल
- महापुरुष → महान् है जो पुरुष
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