पंचतंत्र की 27 प्रसिद्ध कहानियाँ
पंचतंत्र की कहानियाँ बहुत पुरानी हैं। वे मूल रूप से संस्कृत में लिखी गई थीं। ये छोटी कहानियाँ न केवल पढ़ने में रोचक हैं बल्कि बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ भी पढ़ाती हैं। प्रत्येक कहानी कोई न कोई शिक्षा या सीख अवश्य देती है यही कारण है कि इन्हें सभी आयुवर्ग के पाठक बेहद चाव से पढ़ते हैं।
‘पंचतंत्र’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है ‘पंच’ अर्थात पाँच और ‘तंत्र’ अर्थात आचार के नियम। पंचतंत्र मुख्यतः पशु-पक्षियों की कथाओं का नीतिशास्त्र है, जिन्हें बच्चे बेहद पसंद करते हैं।
पंचतंत्र की कहानियाँ (Panchatantra Stories in Hindi)
ठग और साधु
देवशर्मा नाम का एक ब्राह्ममण था। दान में मिले कपड़ों को बेचकर उसने काफी धन इकट्ठा कर लिया था। अपने धन की सुरक्षा के लिए उन्हें एक पोटली में बांधकर उसे सदा अपने साथ रखता था। किसी दूसरे पर विश्वास नहीं करता था।
अष्टभूति नामक चोर ने सदा उसे एक पोटली लिए देखकर सोचा कि यह अवश्य ही बहुमूल्य है, इसे चुराना चाहिए। पहले मैं इसका विश्वास जीतता हूं फिर इसे ठगूंगा।
एक दिन वह देवशर्मा के पास गया और बोला, ‘संत, आपका अभिवादन है। मैं अनाथ हूं। मुझे शिष्य स्वीकार करें। आजन्म मैं आपकी सेवा करूंगा।’ देवशर्मा ने प्रसन्न होकर कहा, ‘ठीक है, मैं तुम्हें शिष्य बनाता हूं पर एक शर्त है- मेरी पोटली को हाथ भी नहीं लगाओगे।’
अष्टभूति देवशर्मा के साथ स्वामीभक्त शिष्य की भांति रहने लगा। एक दिन किसी पुराने शिष्य का निमंत्रण स्वीकार कर दोनों उसके घर पहुंचे। वहां कमरे में स्वर्ण मुहर पड़ी हुई मिली। अष्टभूति ने मालिक का विश्वास जीतने के लिए कहा, ‘श्रीमान् क्षमा करें, यह मुहर तो हमारी नहीं है। हमें इसे दे देना चाहिए।‘
अष्टभूति की ईमानदारी से देवशर्मा अभिभूत होकर म नही मन सोचने लगा, ‘यह तो बहुत ही ईमानदार व्यक्ति है। अब मुझे भय नहीं है। यह मेरा धन नहीं चुराएगा।‘
वापस लौटते समय एक नदी पड़ी। देवशर्मा ने नहाने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा, ‘पुत्र! मैं नहाना चाहता हूं। तुम मेरी गठरी और पोटली का ख्याल रखो।‘ यह कहकर देवशर्मा नहाने चला गया।
अष्टभूति ने धन की पोटली उठाई और चंपत हो गया।
नदी के दूसरे किनारे पर बकरियाँ आपस में लड़ रही थीं।
देवशर्मा उसी दृश्य को देख रहा था। नहाकर जब किनारे आया तो अपनी पोटली और अष्टभूति को वहां न पाकर उसने पहले पुकारा फिर समझ गया कि वह ठगा गया है। एक अनजान पर विश्वास करने के कारण उसे धोखा मिला था, उसकी सारी सम्पति जा चुकी थी।
एकता की शक्ति
एक दिन एक तालाब के किनारे मंथरक (कछुआ), लघुपतनक (कौआ) और हिरण्यक (चूहा) बैठे आपस में बातें कर रहे थे। तभी शिकारी से बचता बचाता चित्रांग (हिरण) वहाँ आया और उनका मित्र बनकर उनके साथ रहने लगा।
एक दिन हिरण अपना खाना ढूंढकर शाम को जब वापस नहीं आया तो सभी मित्र चिंतित हो गए। सबकी सलाह से कौए ने आसमान में उड़कर उसे ढूँढना शुरू किया। हिरण ने कौए को देखा तो चिल्लाकर बोला, “शिकारी के आने से पहले कृपया जाल से मुझे निकालो।”
कौआ दोस्तों के पास पहुंचा। सारी बात उन्हें बताई और चूहे को हिरण के पास ले गया। अपने पैने दाँतों से चूहे ने जाल काट दिया। इसी बीच रेंगता-रेंगता कछुआ भी वहां पहुंच गया था।
तभी शिकारी आया और जाल कटा तथा हिरण को गायब देखा। शिकारी को देखते ही सभी जान बचाकर भागे। कौआ उड़ गया, चूहा पत्थरों के पीछे छुप गया और हिरण ने जंगलों की ओर छलांग लगाई पर कछुआ पकड़ा गया। उसे थैले में बंद कर शिकारी चल पड़ा।