नारायण कवच गीता प्रेस – Narayan Kavach Gita Press PDF

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नारायण कवच गीता प्रेस – Narayan Kavach Gita Press

नारायण कवच गीता प्रेस – Narayan Kavach Gita Press

नारायण कवच गीता प्रेस PDF भगवान् श्री हरी विष्णु जी को समर्पित एक दिव्य कवच है, जिसके माध्यम से आप सरलता से भगवान् श्री हरी विष्णु जी को प्रसन्न करके उनकी अन्नय भक्ति एवं कृपा प्राप्त कर सकते हैं। यह एक बेहद संक्षिप्त स्तोत्र है जिसमें केवल 42 श्लोक हैं। ऐसा माना जाता है कि जो इस कवच का जाप “निष्ठा और भक्ति” के साथ करता है, वह लाभान्वित होता है। मैं इसके पाठ से खुद लाभवंतित हुआ हूँ। आप सभी आस्था के साथ इस पाठ का जाप नियमित रूप से करें और अपनी मनोकामना की ओर कर्म करते रहें। इस पाठ से सारे व्यवधान दूर हो जाते हैं।

भगवान श्री हरी विष्णु की कृपा

भगवान् श्री हरी विष्णु जी अत्यंत दयालु व कृपा निधान हैं। वह अपने भक्तों को समस्त प्रकार के कष्टों से बचाते हुए हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं। विष्णु जी हिन्दू सनातन धर्म के प्रमुख देवी-देवताओं में से एक हैं। वह त्रिमूर्तियों (ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश) में से एक हैं, जिन्हें ब्रह्माण्ड के कुशल सञ्चालन के लिए उत्तरदायी माना जाता है।

नारायण कवच गीता प्रेस – Narayan Kavach Gita Press

अङ्गन्यासः

ऊँ ऊँ नमः — पादयोः (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों का स्पर्श करें)
ऊँ नं नमः — जानुनोः (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों घुटनों का स्पर्श करें)
ऊँ मों नमः — ऊर्वोः (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों की जाँघो का स्पर्श करें)
ऊँ नां नमः — उदरे (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर पेट का स्पर्श करें)
ऊँ रां नमः — हृदि (मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से हृदय का स्पर्श करें)
ऊँ यं नमः – उरसि (मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से छाती का स्पर्श करें)
ऊँ णां नमः — मुखे (तर्जनी और अँगुठे के संयोग से मुख का स्पर्श करें)
ऊँ यं नमः — शिरसि (तर्जनी और मध्यमा के संयोग से सिर का स्पर्श करें)

करन्यासः

ऊँ ऊँ नमः — दक्षिणतर्जन्याम् (दाहिने अँगुठे से दाहिने तर्जनी के सिरे का स्पर्श करें)
ऊँ नं नमः — दक्षिणमध्यमायाम् (दाहिने अँगुठे से दाहिने हाथ की मध्यमा अँगुली का ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)
ऊँ मों नमः — दक्षिणानामिकायाम् (दाहिने अँगुठे से दाहिने हाथ की अनामिका के ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)
ऊँ भं नमः — दक्षिणकनिष्ठिकायाम् (दाहिने अँगुठे से हाथ की कनिष्ठिका के ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)
ऊँ गं नमः — वामकनिष्ठिकायाम् (बायें अँगुठे से बाँये हाथ की कनिष्ठिका के ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)
ऊँ वं नमः — वामानिकायाम् (बायें अँगुठे से बाँये हाथ की अनामिका के ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)
ऊँ तें नमः — वाममध्यमायाम् (बायें अँगुठे से बाये हाथ की मध्यमा के ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)
ऊँ वां नमः — वामतर्जन्याम् (बायें अँगुठे से बाये हाथ की तर्जनी के ऊपर वाला पोर स्पर्श करें)

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