महामृत्युंजय मंत्र – Mahamrityunjay Mantra
महामृत्युंजय मंत्र भारतीय वैदिक मंत्रों में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है, जिसे हिंदू पवित्र ग्रंथों में विशेष रूप से वर्णित किया गया है। यदि आप किसी पुराने रोग से पीड़ित हैं, तो इस मंत्र का पाठ आपके लिए बहुत लाभकारी हो सकता है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप सुबह घर से निकलने से पहले 9 बार और रात को सोने से पहले 9 बार करने की सलाह दी जाती है। इसे प्रतिदिन या हर सोमवार को जाप करना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र का महत्व
कई मान्यताओं के अनुसार, यदि महामृत्युंजय मंत्र का जाप निश्चित संख्या में किया जाए, तो बहुत गंभीर रोग भी समाप्त हो सकते हैं। कहा जाता है कि इस मंत्र के जाप से मृत्यु के संकट को भी टाला जा सकता है। कुंडली में यदि मृत्यु का योग बन रहा हो, तो इस मंत्र का जाप एक उपाय के रूप में बताया जाता है। इसके जाप से दीर्घकालिक जीवन का भी लाभ होता है। सावन के महीने में इस मंत्र का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र – Maha Mrityunjaya Mantra Lyrics
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
महामृत्युंजय मंत्र रचना की कथा
मृकंडू नामक महान ऋषि थे। संतान न होने के कारण वह और उनकी पत्नी मरुदमति बहुत दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने ऋषि से वरदान मांगने के लिए कहा। ऋषि ने अपनी संतान की इच्छा बताई।
शिवजी ने कहा कि आपको अपनी संतान के लिए दो विकल्प में से चुनना होगा। पहला विकल्प है कि आपका पुत्र मूर्ख और दीर्घायु होगा, जबकि दूसरा विकल्प है कि आपका पुत्र बहुत ज्ञानी होगा, लेकिन 16 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो जाएगी।
ऋषि ने दूसरे विकल्प को चुना और जन्म के बाद अपनी संतान मार्कंडेय को बताया कि उसकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में हो जाएगी। मार्कंडेय ने अकाल मृत्यु से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली और महामृत्युंजय मंत्र की रचना की। जब यमराज आए, तो भगवान शिव की आज्ञा से उन्हें मार्कंडेय को छोड़कर जाना पड़ा। भगवान शिव ने मार्कंडेय को अमर होने का वरदान दिया।
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