Lajja Book PDF

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Lajja Book

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लज्जा (Lajja) एक अनमोल उपन्यास है जिसे तस्लीमा नसरीन ने लिखा है। यह पुस्तक भारत और बांग्लादेश में हिंदू-मुस्लिम संबंधों की जटिलता और संघर्षों को बेहद प्रभावशाली तरीके से वर्णित करती है। इस कहानी का केन्द्र एक हिंदू परिवार है, जो बांग्लादेश में हुई हिंसा के बाद अपने बेटे की सुरक्षा के लिए भारत आता है। उनके बेटे का वहां के हालात के कारण भारत आना उनके परिवार के लिए कठिनाइयों का सामना करने का एक कठिन सफर बन जाता है।

लज्जा by Taslima Nasrin की विशेषताएँ

लज्जा उनके परिवार के सदस्यों की भावनाओं, विचारों और सामाजिक परिवेश के साथ गहराई से जुड़ता है। तस्लीमा नसरीन इस पुस्तक के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास करती हैं और जातिवाद एवं सांप्रदायिकता के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठाती हैं। यह पुस्तक वास्तविक घटनाओं पर आधारित है और इसे एक महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति माना जाता है, जो समाज में विचार विमर्श के लिए प्रोत्साहित करती है।

लज्जा तस्लीमा नसरीन (Lajja by Taslima Nasrin) PDF Download

सुरंजन बिस्तर पर लेटे-लेटे अखबार के पन्नों को उलट रहा था। आज के सभी अखबारों की बैनर हेडिंग है – बाबरी मस्जिद का ध्वंस, विध्वस्त। वह कभी अयोध्या नहीं गया, बाबरी मस्जिद नहीं देखी। देखेगा भी कैसे, उसने तो कभी देश से बाहर कदम रखा ही नहीं। राम का जन्म कब हुआ था और मिट्टी को खोदकर कोई मस्जिद बनी या नहीं, यह उसके लिए कोई मतलब नहीं रखता, लेकिन सुरंजन यह मानता है कि सोलहवीं शताब्दी के इस स्थापत्य पर आघात करने का मतलब सिर्फ भारतीय मुसलमानों पर ही आघात नहीं, बल्कि सम्पूर्ण हिंदुओं पर भी आघात करना है। वास्तव में यह सम्पूर्ण भारत पर, समग्र कल्याणबोध पर सामूहिक विवेक पर आघात करना है।

सुरंजन समझ रहा है कि बांग्लादेश में बाबरी मस्जिद को लेकर तीव्र तांडव शुरू हो जाएगा। सारे मंदिर धूल में मिल जाएंगे। हिंदुओं के घर जलेंगे और दुकानें लूटी जाएंगी। भारतीय जनता पार्टी की प्रेरणा से कार सेवकों ने वहाँ बाबरी मस्जिद को तोड़कर, इस देश के कट्टर कठमुल्लावादी दलों को और भी मजबूत कर दिया है। विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दल क्या सोचते हैं कि उनके उन्मत्त आचरण का प्रभाव केवल भारत की भौगोलिक सीमाओं में ही सीमित रहेगा? भारत में साम्प्रदायिक हंगामे ने गंभीर आकार ले लिया है। मारे गए लोगों की संख्या पाँच सौ से लेकर हजारों तक पहुँच गयी है। प्रति घंटे की रफ्तार से मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है।

हिंदुओं के स्वार्थरक्षकों को क्या पता नहीं है कि कम से कम दो ढाई करोड़ हिंदू बांग्लादेश में हैं? सिर्फ बांग्लादेश में ही क्यों, पश्चिम एशिया के अधिकांश देशों में हिंदू हैं। उनकी क्या दुर्दशा होगी, क्या हिंदू कठमुल्लों ने कभी सोचा भी है? एक राजनीतिक दल होने के नाते भारतीय जनता पार्टी को यह समझना चाहिए कि भारत कोई ‘विच्छिन्न जम्बू द्वीप’ नहीं है। भारत में यदि विषफोड़े का जन्म होता है तो उसका दर्द सिर्फ भारत को ही नहीं भोगना पड़ेगा, बल्कि वह दर्द सबसे पहले पड़ोसी देशों में फैल जाएगा।

सुरंजन आँख मूँदकर सोया रहता है। उसे धकेलकर माया बोली, “तुम उठोगे कि नहीं, बोलो! मां, पिताजी तुम्हारे भरोसे बैठे हैं।” सुरंजन अँगड़ाई लेते हुए बोला, “तुम चाहो तो चली जाओ, मैं इस घर को छोड़कर एक कदम भी नहीं जाऊंगा।”

“और वे?”
“मैं नहीं जानता।”
“यदि कुछ हो गया तो?”
“क्या होगा।”
“मानो घर लूट लिया, जला दिया।”
“लूटेंगे, जलाएंगे।”
“क्या तुम उसके बाद भी बैठे रहोगे?”
“बैठा नहीं, लेटा रहूँगा।”

खाली पेट सुरंजन ने एक सिगरेट सुलगाई। उसे चाय पीने की इच्छा हो रही थी। किरणमयी रोज सुबह उसे एक कप चाय देती है, पर आज अब तक नहीं दी। इस वक्त उसे कौन देगा एक कप गरम-गरम चाय? माया से बोलना बेकार है। यहाँ से भागने के अलावा फिलहाल वह कुछ भी सोच नहीं पा रही है। इस वक्त चाय बनाने के लिए कहने पर उसका गला फिर से सातवें आसमान पर चढ़ जाएगा। वह खुद ही बना सकता है पर आलस्य उसे छोड़ ही नहीं रहा है। उस कमरे में टेलीविजन चल रहा है। सीएनएन के सामने आँखें फाड़कर बैठे रहने की उसकी इच्छा नहीं हो रही है। उस कमरे से माया थोड़ी-थोड़ी देर में चीख रही है, “भैया लेटे-लेटे अखबार पढ़ रहा है, उसे कोई होश नहीं।”

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