कुमारतन्त्र (Kumar Tantra Book) PDF

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कुमारतन्त्र (Kumar Tantra Book)

कुमारतन्त्र (Kumar Tantra Book)

The Kumar Tantra book offers profound insights and practical knowledge on various aspects such as meditation, energy healing, chakra balancing, and personal growth. You can download the PDF of Kumar Tantra in high-quality and printable format by using the given link below.

Kumar Tantra is a renowned book written by Ravi Datt Vaidya Jivi, a well-known author and expert in the field. This book is the best guide that explores the ancient Indian wisdom of the Kumar Tantra system.

All the readers of the Kumar Tantra book can expect to gain numerous benefits. The book offers techniques and practices that can enhance one’s physical, mental, and spiritual well-being. By incorporating the teachings from this book, readers can experience greater harmony, balance, and self-awareness.

कुमारतन्त्र (Kumar Tantra) by Ravi Datt Vaidya Jivi

प्रथम इस रावणकृत कुमारतंत्र अर्थात् बालकचिकित्सा- प्रकाशनामक ग्रंथका टीकाकार रविदत्तशास्त्री राजवैद्य, अनेक तरहके विघ्नोंके नाशपूर्वक शिष्यशिक्षा के लिये नमस्कारात्मक मङ्गल करते हैं; मैं अल्पमति टीकाकार विघ्नोंके समूहको नाशनेवाले श्रीयुत गणेशजीके दोनों चरणारविन्दोंको वारंवार प्रणाम कारता हूं जिन्होंके चरणारविन्दों- को किया प्रणाम उत्तम बुद्धिको विस्तृत करता है ॥ १ ॥ और श्रीयुत गुरुजीको प्रणाम कर इर रावणकृत कुमारतंत्र की भाषाटीका रचताहूं ॥२॥ यह मूल ग्रंथ रावणः बालकोंको सुख पहुँचाने के लिये संपूर्ण आयुर्वेदको विचार कर संस्कृतमें रचाथा वही है, इसको संपूर्ण मनुष्य अच्छीतरह जान बालकों की रक्षाके लिये चिकित्सा करें इस वास्ते इस ग्रंथकी भाषाटीका बनाने को रविदत्तशास्त्री उद्यत हुआ है ॥२॥

प्रथम दिनमें प्रथम महीने में अथवा प्रथम वर्षमें नन्दना नाम मातृका करके गृहीत हुए बालकको प्रथम ज्वर हो; वह बालक अशुभ शब्दको कहै, आत्कारको करे और चूंचीके दूधको ग्रहण नहीं करे उसकी बलि कहेंगे जिस करके शुभ प्राप्त हो । नदीके दोनों किना रोंकी मिट्टी लेके पुत्तली बना, सफेद चावल, सफेद पुष्प सफेद सात- ध्वजा, सात दीपक, सात स्वस्तिक, सात बडे, सात पूरी, सात जामुन, सात मुष्टि अर्थात् मुठिये, चंदन, फूल, नागरपान, मछलीका मांस, मदिरा, सुन्दर चावल इन्हें ले पूर्वदिशामें चौराहा विषे मध्याह्नमें वलि देना, पीछे पीपल के पत्तोंको कलशमें डाल शान्तिजलसे स्नान करावे, पीछे लहसन, सरसों, बकरेका शींग, नींबके पत्ते, गंगाजल इन्होंसे बालकको धूपित करे । “ॐनमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिं हन हन मुञ्च मुञ्च ह्रीं फट् स्वाहा” ऐसे इस मंत्रसे तीन दिन बलि देके चौथे दिन ब्राह्मणको भोजन करावे उससे शुभफल प्राप्त होताहै ॥१॥

दूसरे दिन में दूसरे महीने में अथवा दूसरे वर्षमें सुनन्दा नाम मातृकासे गृहीत हुये बालकको प्रथम ज्वर होता है वह बालक नेत्रों- को खोलता है शरीरको कँपाता है शयन नहीं करता है पुकारता है। चूंची के दूधको नहीं ग्रहण करता है आत्कार होता है, उसकी बलि कहते हैं जिस करके शुभ प्राप्त हो । चावल, एक हलका पृष्ठभाग, दही, गुड, घृत इन्होंसे युत किया एक सहनक, गंध, नागरपान, पीला पीली सातध्वजा, सात दीपक, दश स्वस्तिक, मछलीका मांस, मदिरा, तिलोंका चून इन्होंसे पश्चिम दिशा में चौराहा विषे तीन दिन सायंकालमें बलि देना, पीछे शांति जलसे स्नान करावे गंगाजल, सरसों, बिलावके रोम, खस, नेत्रवाला, घृत इन्हों करके धूप देवे नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिंहन हन मुञ्च मुञ्च हैं। फटू त्वाहा’

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