कर्मविपाकसंहिता (Karma Vipaak Sanhita)
कर्मविपाकसंहिता योग दर्शन का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो पतंजलि ऋषि द्वारा रचित “योग सूत्र” में प्रस्तुत है। यह अध्याय 2 (साधन पाद) के अंतर्गत आता है। कर्म विपाक संहिता की विशेषता यह है कि यह योगी को उसके कर्मों के प्रभाव को समझने और व्यक्तिगत विकास के लिए समर्थ करता है। यह विषय योगी को उसके पूर्व कर्मों के विपाक (परिणाम) को समझने और नियंत्रित करने में मदद करता है।
कर्म विपाक संहिता का मुख्य उद्देश्य यह है कि योगी को उसके कर्मों के परिणामों को समझने के माध्यम से संयम (self-control) और नियंत्रण की प्राप्ति में मदद करें। इसके माध्यम से, योगी अपने भविष्य में होने वाले कर्मफलों को नियंत्रित करने में सक्षम होता है और अच्छे कर्मों की प्रोत्साहना करता है।
कर्म विपाक संहिता अनुसार, हर कर्म का एक निश्चित परिणाम होता है, जो स्वयं योगी के द्वारा निर्धारित किया जाता है। योगी को अपने कर्मों के प्रत्येक परिणाम का उपयोग करके अपने विकास का मार्ग चुनने में मदद मिलती है। कर्म विपाक संहिता उत्तम और शुद्ध भविष्य की साधना के लिए एक महत्वपूर्ण योगाभ्यास है। यह योगी को उसके कर्मों के प्रभाव को समझने और सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करता है।