कलश स्थापना विधि मंत्र – Kalash Sthapana Vidhi and Mantra
हिन्द धर्म के अनुसार नवरात्रि का पावन पर्व देशभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार नवरात्रि का पावन पर्व 5 अक्तूबर 2024 से आरंभ हो रहा है। इस नौ दिनों में देवी मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की पूजा अर्चना की जाती हैं।
नवरात्रि के पहले दिन लोग अपने घरों में कलश की स्थापना करते है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कलश को सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। वहीं दैवीय पुराण में कलश को नौ देवियों का स्वरूप माना गया है। कहा जाता है कि कलश के मुख में श्रीहरि भगवान विष्णु, कंठ में रुद्र और मूल में ब्रह्मा जी वास करते हैं। तथा इसके बीच में दैवीय शक्तियों का वास होता है।
शारदीय नवरात्रि 2024 कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
- नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए कलश स्थापना की जाती है और फिर 9 दिनों तक लगातार देवी आराधना का पर्व मनाया जाता है।
- इस साल 3 अक्तूबर को शारदीय नवरात्रि शुरू होने जा रहा है और इस दिन सुबह सुबह 5 बजकर 42 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट का समय शुभ है. इसके अलावा दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से 2 बजकर 40 मिनट के बीच भी आप घर में कलश स्थापना कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य और पूजा-अनुष्ठान हमेशा ही सफल होता है।
नवरात्रि में कलश स्थापना के लाभ
- धार्मिक मान्यता और शास्त्र अनुसार कलश में सभी तीर्थ और देवी-देवताओं का वास माना गया है।
- ये मां दुर्गा की पूजा-अर्चना में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक माने जाते हैं।
- घट स्थापना से भक्त को भी पूजा का शुभ फल मिलता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, जिससे सुख-शांति आती है।
कलश स्थापना के लिए सामग्री लिस्ट
पुराणों के अनुसार मांगलिक कामों के पहले कलश की स्थापना करना शुभ माना जाता है। क्योंकि कलश में भगवान गणेश के अलावा नक्षत्र, ग्रह विराजमान होते हैं। इसके अलावा कलश में गंगाजल के अलावा तैतीस कोटि देवी-देवता होते है। इसलिए कलश स्थापना करना शुभ योग देने वाला माना जाता है। कलश स्थापना के लिए मिट्टी, मिट्टी का घड़ा, मिट्टी का ढक्कन, कलावा, जटा वाला नारियल, जल, गंगाजल, लाल रंग का कपड़ा, एक मिट्टी का दीपक, मौली, थोड़ा सा अक्षत, हल्दी-चूने से बना तिलक आदि ले आएं।
माता के श्रृंगार के लिए सामग्री
- नवरात्रि में माता का श्रृंगार किया जाता है। इसके लिए लाल चुनरी, चूड़ी, पायल, कान की बाली, सिंदूर, महावर, बिंदी, काजल, लाली, इत्र, मेंहदी, फूल माला, बिछिया आदि श्रृंगार का सामान अभी से लाएं। ये सारी चीजें एक पैकेट में भी आ जाती हैं, जिसको लाने में ज्यादा आसानी हो जाएगी।
- मिट्टी का बर्तन, मिट्टी पर रखने के लिए साफ कपड़ा, साफ जल, कलावा, शुद्ध मिट्टी, जौ या गेहूं चीजों की आवश्यकता पड़ेगी।
- अगर आप घर में अखंड ज्योति जला रहे हैं तो पीतल या मिट्टी का दीपक, घी, रूई बत्ती, अक्षत, रोली
कलश स्थापना विधि और मंत्र
सबसे पहले घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा के हिस्से की अच्छे से साफ-सफाई करके वहां पर जल छिड़कर साफ मिट्टी या बालू बिछानी चाहिए। फिर उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए। उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए। जलावशोषण का मतलब है कि उस मिट्टी की परत के ऊपर जल छिड़कना चाहिए । अब उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश को अच्छ से साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए। अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल भी जरूर मिलाना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र को बोलना चाहिए।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
ये मंत्र पढ़ें और अगर मंत्र न बोल पाएं तो या ध्यान न रहे तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाए। पवित्र नदियों के साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए, ताकि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण कर लें।
इस प्रकार आह्वाहन आदि के बाद कलश के मुख पर कलावा बांधिये और एक मिट्टी की कटोरी से कलश को ढक दीजिये। अब ऊपर ढकी गयी उस कटोरी में जौ भरिए। अगर जौ न हो तो चावल भी भर सकते हैं। इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े में लपेटकर ऊपर कलावे से बांध दें। फिर उस बंधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर दीजिए।
कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है। लिहाजा कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए। दूसरी बात ये है कि कुछ लोग कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं। इसमें कोई परेशानी नहीं है, आप ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते कि शंख दक्षिणावर्त होना चाहिए और उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए। इस सारी कार्यवाही में एक चीज़ का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ये सब करते समय नवार्ण मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। नवार्ण मंत्र है- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।’