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इंडिया अर्थात भारत
इंडिया अर्थात भारत पुस्तक में यह बताया गया है कि कैसे उपनिवेशवादी शुक्ति के पीछे ईसाई विचार थे और कैसे बाइबिल ने ही उन्हें प्रेरित किया था। ईसाई चेतना ‘दूसरी’ संस्कृतियों को सदैव दास बनाना चाहती है और इसके लिए वह कई नए रूप धारण करती रहती है। ज्ञानोदय के बाद सेकुलरवाद भी ईसाई चेतना ‘का घरा हुआ ही वेश है। उपनिवेशों की लूट के पीछे ईसाई थियोलोजी की प्रेरणा रही है। गैर-यूरोपीय मूल निवासी समाजों की निरंतरता को समाप्त करके उन्होंने विश्व के स्वदेशी तंत्रों को बहुत गहरी हानि पहुंचाई है।
इस औपनिवेशिक राज ने भयंकर हिंसा, षडयंत्र और फूट डाल कर राज करने वाली जैसी कई नीतियों को अपनाया। उपनिवेशिकता ने भारत में किस स्तर तक भारत की चिति को विकृत कर रखा है साईं दीपक इस ओर ध्यान आकर्षित करते हैं और बताते हैं कि इसके परिणाम स्वरुप भारतीय स्वयं से ही घृणा करने लगे हैं। भारत का शासक और विधिक तंत्र उपनिवेशिकता में ही उपजा है और अपनी स्वदेशिता को भूल चुका है। विदेशी से इसका आकर्षण गहरा है और भारत की वैचारिक जड़ें यह परा-सभ्यतागत तंत्रों में खोजता है। यह दुखद है।