चौथ माता व्रत कथा – Chauth Mata ki Katha
Chauth Mata Ki Katha in Hindi
प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष 4 के दिन संकट चतुर्थी तथा चौथमाता का व्रत किया जाता है। दिनभर निराहार उपवास किया जाता है। चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर तथा गणेशजी एवं चौथ माता की पूजा करके लड्डू का भोग लगाकर भोजन करते हैं। वैशाख कृष्ण 4 से ही चौथमाता का व्रत प्रारंभ करते हैं।
ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए। हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।
हिंदू धर्म में माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इस साल सकट चौथ का व्रत 31 जनवरी, 2021 को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता है। इस दिन को संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ या तिलकुटा चौथ के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं कि इस व्रत को रखने से संतान दीर्घायु होती है।
Chauth Mata Katha/ चौथ माता व्रत पूजा विधि-
1. सुबह स्नान ध्यान करके भगवान गणेश की पूजा करें।
2. इसके बाद सूर्यास्त के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
3. गणेश जी की मूर्ति के पास एक कलश में जल भर कर रखें।
4. धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें।
5. तिलकूट का बकरा भी कहीं-कहीं बनाया जाता है।
6. पूजन के बाद तिल से बने बकरे की गर्दन घर का कोई सदस्य काटता है।
व्रत के दिन चंद्रमा को ऐसे दें अर्घ्य-
मान्यता है कि सकट चौथ व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है। अर्घ्य में शहद, रोली, चंदन और रोली मिश्रित दूध से देना चाहिए। कुछ जगहों पर महिलाएं व्रत तोड़ने के बाद सबसे पहले शकरकंद खाती हैं।
चौथ माता व्रत कथा – Chauth Mata Katha Hindi
कथा- ‘श्री गणेशाय नम:’।
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो।
अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।
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