ब्राह्मण मीमांसा
ब्राह्मण मीमांसा, जिसे अन्य नामों में कर्मकाण्ड कहा जाता है, वेदों के ब्राह्मण भाग का अध्ययन और विवेचन करने वाली एक प्राचीन भारतीय दर्शन है। इसका उद्भव वेदों के व्याख्यान के साथ ही है। ब्राह्मण ग्रंथों में वेदों की समीक्षा, विवेचन, और उनकी अध्ययन पद्धति का विस्तृत वर्णन होता है।
ब्राह्मण ग्रंथों का उद्गम समृद्धि काल (1000 ईसा पूर्व – 600 ईसा पूर्व) के दौरान हुआ, जब वेदों के व्याख्यान और उनके अनुपालन की आवश्यकता बढ़ गई थी। ये ग्रंथ यजुर्वेद, ऋग्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के ब्राह्मण भागों के अनुसार संरचित हैं। ब्राह्मण मीमांसा के प्रमुख ग्रंथों में आपको “शतपथ ब्राह्मण” (यजुर्वेद), “आश्वलायन ब्राह्मण” (रिग्वेद), “आरण्यक” (ब्राह्मण के अंतिम भाग), और “गोभिलीय गृह्यसूत्र” (श्रौतसूत्र) जैसे ग्रंथ मिलेंगे।
ब्राह्मण ग्रंथों में वेदों की ऋत्विजों के लिए कठिन यज्ञों की विधियों, मन्त्रों और उपासना की विविधताओं का वर्णन है। इनमें यज्ञ, हवन, आहुतियों का महत्वपूर्ण रोल है, जो देवताओं की प्रीति और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए किए जाते थे। ब्राह्मण ग्रंथों के लेखक और समय निर्धारित करना कठिन है क्योंकि ये ग्रंथ प्राचीन काल में मुख्य रूप से मौखिक परंपराओं के माध्यम से प्रसारित हुए थे। इन ग्रंथों का प्राचीन भारतीय दार्शनिकों और ऋषियों के धार्मिक विचारों को संगृहीत करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।