भक्ति काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
ईश्वर के प्रति उत्कट – प्रेम और उसके नाम का स्मरण यही सबसे महत्वपूर्ण तत्व थे, जो भक्ति काव्य के आधार बने। सगुण-निर्गुण तथा राम और कृष्ण का लीला गान आदि बातें इसी के बाद आती हैं। उपर्युक्त बातों के आधार पर हम भक्ति काव्य की सामान्य विशेषताएं बता सकते हैं, जो संपूर्ण भक्ति काव्य पर लागू की जा सकती हैं। भक्ति काल में अलग-अलग आराध्यों की भक्ति संबंधी रचनाओं का सबसे अधिक प्रभाव रहा है। भक्ति काल में सगुण विचारधारा एवं निर्गुण विचारधारा के सगुण एवं निर्गुण तरह के रूपों की भक्ति का प्रभाव देखने को मिलता है। भक्ति काल की दूसरी प्रमुख प्रवृत्ति आमजन हिताय रही है।
भक्ति काल का केंद्रीय तत्व ईश्वर भक्ति है। भक्ति काल के सभी कवि पहले भक्त हैं और बाद में कवि। उन्होंने कविता करने के लिए रचनाएं नहीं की बल्कि ईश्वर भक्ति के रूप में उनके हृदय के उद्गार की कविता के रूप में हमारे सामने हैं। ईश्वर के प्रति आस्था और सच्चे सरल से आराध्य का गुणगान ही काव्य के रूप में प्रचलित हुआ। महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी भक्त संतो ने ईश्वर की भक्ति भावना से प्रेरित होकर अपनी रचनाएं की है, परंतु उनकी भक्ति की प्रकृति में अंतर है। इनमें से कई अपने ईश्वर को निर्गुण रूप में देखते हैं तो कई सगुण रूप में। लेकिन भक्ति ही दोनों धाराओं का सर्वसमावेशी तत्व है, भक्ति इस काल की मूल प्रवृत्ति और केंद्रीय चेतना भी है।
भक्ति काव्य की मुख्य विशेषताएं
- भक्तों की हर धारा भगवान के प्रति असीम प्रेम और भक्ति दर्शाती है। संतकव्या, सूफिकाव्य, रामकाव्य और कृष्णकाव्य, सभी में ईश्वर के प्रति गहरा प्रेम है।
- भक्तिकाल के भक्तों ने समाज को धूमधाम से मुक्त करने की कोशिश की और एक समतावादी समाज के निर्माण में योगदान दिया।
- इस अवधि में गुरु महिमा को भी महत्व दिया गया है।
भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ – भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताएँ
- गुरु महिमा
- भक्ति की प्रधानता
- बहुजन हिताय
- लोकभाषाओं की प्रधानता
- समन्वयात्मकता
- वीर काव्यों की रचना
- प्रबन्धात्मक चरित काव्य
- नीतिकाव्य