श्रीमद्भगवद्गीता गीता
श्रीमद्भगवद्गीता, भारतीय धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जिसे महाभारत के “भीष्मपर्व” के अंतर्गत मिलता है। यह ग्रंथ भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का वर्णन करता है, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले दिन हुआ था। भगवद्गीता को महाभारत के एक अद्वितीय अध्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता में योग, भक्ति, ज्ञान, कर्म और ध्यान आदि विभिन्न योगों का उल्लेख है, जो अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। इसमें मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने का प्रयास किया गया है, साथ ही मानव जीवन में धर्म, कर्तव्य, सम्बन्ध, और आत्मा के महत्व को भी बताया गया है।
Bhagwat Geeta
श्रीमद्भगवद्गीता के मुख्य संदेश कुछ हैं:
- कर्मयोग: कर्म करते हुए फल की आशा किए बिना कर्तव्यनिष्ठा से कार्य करना।
- भक्तियोग: परमात्मा के प्रति भक्ति और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करना।
- ज्ञानयोग: विवेक और आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करना।
- संन्यासयोग: देहत्याग के माध्यम से आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त करना।
- संगयोग: समाज में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आत्मज्ञान प्राप्त करना।
यह ग्रंथ गीता उपदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध होता है। भगवद्गीता में कुछ महत्वपूर्ण अद्भुत भाव हैं जैसे कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, और राजविद्या।
भगवद्गीता का सार यह है कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए उसे भगवान के प्रति श्रद्धा और निष्काम कर्म में जुट जाना चाहिए, जिससे उसे आत्मज्ञान और मुक्ति प्राप्त हो सके।