Atul Subhash’s Sucide Note (Justice is Due) PDF

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Atul Subhash's Sucide Note (Justice is Due)
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Atul Subhash’s Sucide Note (Justice is Due)

बेंगलुरु में वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी अतुल सुभाष की आत्महत्या ने देश की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश के रहने वाले 34 वर्षीय अतुल सुभाष ने अपने मरने से पहले एक 24 पन्नों का “Suicide Note” छोड़ा, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ चल रहे कानूनी मामलों और उत्पीड़न के आरोप लगाए। यह नोट अब पीडीएफ में डाउनलोड के लिए उपलब्ध है।

कौन थे अतुल सुभाष?

अतुल सुभाष एक ऑटोमोबाइल कंपनी में डायरेक्टर स्तर के वरिष्ठ अधिकारी थे। वह बेंगलुरु के मराठाहल्ली इलाके में अकेले रहते थे। अपनी पत्नी से अलग होने के बाद वह मानसिक और भावनात्मक संघर्ष झेल रहे थे। उनके जीवन के अंत ने पेशेवरों के व्यक्तिगत संघर्षों को उजागर किया है।

घटना की विस्तृत योजना

अतुल ने अपने अंतिम दिनों को तीन चरणों में योजनाबद्ध तरीके से तैयार किया था।

  1. पूर्व नियोजित कार्य:

    • अंतिम दो दिनों के लिए समय सारणी बनाई।
    • कोर्ट, कार्यस्थल और परिवार को ईमेल भेजे।
    • अपनी संपत्ति और दस्तावेजों को लेकर निर्देश छोड़े।
    • एक वीडियो स्टेटमेंट रिकॉर्ड किया।
  2. आत्महत्या के दिन की तैयारी:

    • एनजीओ के वॉट्सऐप ग्रुप पर संदेश भेजा।
    • छाती पर “Justice is Due” का संदेश लिखकर छोड़ा।
    • कानूनी आरोपों का विस्तृत विवरण लिखा।

अतुल सुभाष के कानूनी संघर्ष

अतुल पर उनकी पत्नी द्वारा उत्तर प्रदेश में नौ मुकदमे दर्ज कराए गए थे। इनमें हत्या के प्रयास और दहेज उत्पीड़न के आरोप शामिल थे।
अपने सुसाइड नोट में उन्होंने अपनी पत्नी निखिता सिंघानिया, उनके परिवार और जौनपुर के एक पारिवारिक न्यायाधीश समेत पांच लोगों का नाम लिया।

पुलिस जांच और एफआईआर

अतुल के परिवार द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद मराठाहल्ली पुलिस ने उनकी पत्नी और तीन अन्य लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने (IPC धारा 108) और सामूहिक आपराधिक मंशा (धारा 3(5) BNS) के तहत केस दर्ज किया।
शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि अतुल की पत्नी ने अपने बेटे से मिलने के लिए 30 लाख रुपये की मांग की थी।

भारतीय कानून और न्याय व्यवस्था पर सवाल

अतुल सुभाष की दर्दनाक मौत एक बार फिर दिखाती है कि कैसे व्यक्तिगत संघर्षों में कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है।

  • क्या हमारा न्याय तंत्र निर्दोषों को बचाने में विफल हो रहा है?
  • क्या दहेज और पारिवारिक विवादों में कानून का सही उपयोग हो रहा है या इसे हथियार बनाया जा रहा है?

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