अनंत की पुकार (Anant ki Pukar Book By Osho)
यह पुस्तक अपने-आप में अनूठी है, अद्वितीय है। यहां ओशो अपने कार्य, उसकी रूप-रेखा और उसके व्यावहारिक पहलुओं पर बात करते हैं, और साथ ही उन सबको भी संबोधित करते हैं जो इस कार्य का हिस्सा होना चाहते हैं।
ओशो बताते हैं कि किस प्रकार इस कार्य में सहभागी होना आत्म-रूपांतरण की एक विधि बन सकता है, और कहां-कहां हम चूक सकते हैं, कैसे इस चूकने से बच सकते हैं। ओशो कहते हैं, किसी को कोई संदेश-वाहक नहीं बनना है। संदेश को जीना है, स्वयं संदेश बनना है। तब तुम एक रूपांतरण से गुजरोगे और तुम्हारा होना मात्र ही संदेश को उन सब तक पहुंचा देगा जो प्यासे हैं।
अनंत की पुकार पुस्तक विषय सूची
- प्रवचन 1 : ध्यान-केंद्र की भूमिका
- प्रवचन 2 : एक एक कदम
- प्रवचन 3 : कार्यकर्ता की विशेष तैयारी
- प्रवचन 4 : ‘मैं’ की छाया है दुख
- प्रवचन 5 : अवधिगत संन्यास
- प्रवचन 6 : संगठन और धर्म
- प्रवचन 7 : ध्यान-केंद्र के बहुआयाम
- प्रवचन 8 : रस और आनंद से जीने की कला
- प्रवचन 9 : धर्म की एक सामूहिक दृष्टि
- प्रवचन 10 : कार्यकर्ता का व्यक्तित्व
- प्रवचन 11 : ध्यान-केंद्र : मनुष्य का मंगल
- प्रवचन 12 : काम के नए आयाम
- प्रवचन 13 : संगठन अनूठा और क्रांतिकारी
अनंत की पुकार – पहला प्रवचन (ध्यान-केंद्र की भूमिका)
पूरी पृथ्वी को छोड़ भी दें तो इस देश में भी एक आध्यात्मिक संकट की, एक स्प्रिचुअल क्राइसिस की स्थिति है। पुराने सारे मूल्य खंडित हो गए हैं। पुराने सारे मूल्यों का आदर और सम्मान विलीन हो गया है। नये किसी मूल्य की कोई स्थापना नहीं हो सकी है। आदमी बिलकुल ऐसे खड़ा है जैसे उसे पता ही न हो–वह कहां जाए और क्या करे? ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि मनुष्य का मन बहुत अशांत, बहुत पीड़ित, बहुत दुखी हो जाए।
एक-एक आदमी के पास इतना दुख है कि काश हम उसे खोल कर देख सकें उसके हृदय को, तो हम घबड़ा जाएंगे। जितने लोगों से मेरा संपर्क बढ़ा उतना ही मैं हैरान हुआ! आदमी जैसा ऊपर से दिखाई पड़ता है, उससे ठीक उलटा उसके भीतर है। उसकी मुस्कुराहटें झूठी हैं, उसकी खुशी झूठी है, उसके मनोरंजन झूठे हैं; और उसके भीतर बहुत गहरा नरक, बहुत अंधेरा, बहुत दुख और पीड़ा भरी है। इस पीड़ा को, इस दुख को मिटाने के रास्ते हैं; इससे मुक्त हुआ जा सकता है।