आदि गुरु शंकराचार्य किताब
आदि गुरु शंकराचार्य भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया। शंकराचार्य अपने समय के उत्कृष्ट विद्वान् एवं दार्शनिक थे। इतिहास में उनका स्थान इनके ‘अद्वैत सिद्धान्त’ के कारण अमर है। गौड़पाद के शिष्य ‘गोविन्द योगी’ को शंकराचार्य ने अपना प्रथम गुरु बनाया। गोविन्द योगी से उन्हें ‘परमहंस’ की उपाधि प्राप्त हुई।
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी में केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। माना जाता है कि स्वंय भगवान शिव शंकराचार्य के रूप में जन्म लिए थे। उनका जन्म वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को हुआ था। उनका नाम शंकर रखा गया, जो आदि गुरु शंकराचार्य कहलाए। शंकराचार्य को जगद्गुरु के रूप में मान्यता प्राप्त है। ‘शंकराचार्य’ यह एक उपाधि है, जो हर युग में एक ऋषि को मिलती है। शंकराचार्य बहुत ही कम उम्र में संन्यासी बन गए थे। शंकराचार्य का निधन सिर्फ 32 साल में हो गया था।