हिन्दी साहित्य
हिन्दी साहित्य: एक समृद्ध इतिहास
हिन्दी साहित्य ने अपनी शुरुआत लोकभाषा कविता के माध्यम से की और गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ। हिन्दी का आरम्भिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिन्दी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है—गद्य, पद्य और चम्पू। जो गद्य और पद्य दोनों में हो, उसे चम्पू कहते हैं। खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी है, इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे गये उपन्यास परीक्षा गुरु को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।
हिन्दी साहित्य का महत्व
हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। इसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा तक जातीं हैं, परन्तु मध्ययुगीन भारत के अवधी, मागधी, अर्धमागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य को हिन्दी का आरम्भिक साहित्य माना जाता है। हिंदी साहित्य का आरम्भ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केन्द्र स्थापित हो गए थे, जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी।
हिन्दी साहित्य के ऐतिहासिक चरण
हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिए पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:
- आदिकाल (1400 ईस्वी पूर्व)
- भक्ति काल (1375 से 1700)
- रीति काल (संवत् 1700 से 1900)
- आधुनिक काल (1850 ईस्वी के पश्चात)
- नव्योत्तर काल (1980 ईस्वी के पश्चात)
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