मार्क्सवाद के सिद्धांत
मार्क्सवाद के सिद्धांत पर समझना बहुत जरूरी है। मार्क्सवाद क्रांतिकारी समाजवाद का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह आर्थिक और सामाजिक समानता में विश्वास करता है, इसलिए मार्क्सवाद सभी व्यक्तियों की समानता का दर्शन प्रस्तुत करता है। मार्क्सवाद की उत्पत्ति खुली प्रतियोगिता, स्वतंत्र व्यापार और पूंजीवाद के विरोध के कारण हुई थी। यह पूंजीवाद व्यवस्था को आमूल रूप से परिवर्तित करने और सर्वहारा वर्ग की समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए हिंसात्मक क्रांति को अनिवार्य मानता है। इस क्रांति के बाद ही आदर्श व्यवस्था की स्थापना होगी, जो वर्गविहीन, संघर्षविहीन और शोषणविहीन होगी।
मार्क्सवाद की प्रमुख विशेषताएं
- मार्क्सवाद पूंजीवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है।
- मार्क्सवाद पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए हिंसात्मक साधनों का प्रयोग करता है।
- मार्क्सवाद प्रजातांत्रिक संस्थाओं को पूंजीपतियों की संस्था मानता है, जो उनके हित के लिए और श्रमिकों के शोषण के लिए बनाई गई है।
- मार्क्सवाद धर्म विरोधी है और धर्म को मानव जाति के लिए अफीम कहा है, जिसके नशे में लोग उंघते रहते हैं।
- मार्क्सवाद अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद में विश्वास करता है।
- समाज या राज्य में शासकों और शोषितों के बीच वर्ग संघर्ष अनिवार्य है।
- मार्क्सवाद अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत द्वारा पूंजीवाद के जन्म को स्पष्ट करता है।
मार्क्सवाद के प्रमुख सिद्धांत
- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत: द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्स के विचारों का मूल आधार है। मार्क्स ने द्वंद्वात्मक प्रणाली को हीगल से ग्रहण किया है। मार्क्स के द्वंद्ववाद को समझने के लिए हीगल के विचारों को जानना आवश्यक है। हीगल के अनुसार, सम्पूर्ण संसार गतिशील है और इसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। उन्होंने इतिहास में घटनाओं का क्रम मात्र नहीं, बल्कि विकास की तीन अवस्थाओं का विवेचन किया है – 1. वाद 2. प्रतिवाद 3. संवाद।
- इतिहास की आर्थिक भौतिकवादी व्याख्या: मार्क्स की विचारधारा में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के समान, इतिहास की आर्थिक व्याख्या का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है। मार्क्स का मानना है कि इतिहास की सभी घटनाएं आर्थिक स्थितियों में होने वाले परिवर्तनों का परिणाम हैं।
- वर्ग संघर्ष का सिद्धांत: मार्क्स ने कहा है कि अब तक के सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है। कुलीन व्यक्ति, साधारण व्यक्ति, श्रमिक और पूंजीपतियों के बीच संघर्ष लगातार जारी है। मार्क्स का निष्कर्ष है कि आधुनिक काल में श्रमिक संगठित होकर पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त कर देंगे।
- अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत: मार्क्स ने अपनी पुस्तक “दास केपिटल” में अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का विवेचन किया है। उनके अनुसार, पूंजीपति श्रमिकों को उनका उचित पारिश्रमिक न देकर उनके श्रम का सम्पूर्ण लाभ स्वयं हड़प लेते हैं।
- सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद: मार्क्स का कहना है कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत के अनुसार, पूंजीवादी व्यवस्था में अंतर्निहित विरोध स्वभाव के कारण पूंजीपति वर्ग में संघर्ष होना एक आवश्यकता है।
- वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज: मार्क्स का विचार है कि जैसे ही पूंजीवादी वर्ग का अंत हो जाएगा, राज्य का औचित्य भी समाप्त हो जाएगा। ऐसे में समाज में वर्ग विहीन एवं राज्य विहीन परिस्थितियों का निर्माण होगा।
मार्क्सवाद का महत्व या प्रभाव
मार्क्सवाद की विभिन्न आलोचनाओं के बावजूद इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। आज मार्क्सवाद ने पूरे विश्व के स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। यह पीड़ितों, दलितों, शोषितों और श्रमिकों का पक्ष लेकर मानव कल्याण के लिए एक ठोस एवं वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है। यहां मार्क्सवाद की प्रमुख देनें हैं:
- वैज्ञानिक दर्शन: मार्क्सवाद को वैज्ञानिक समाजवाद भी कहा जाता है। मार्क्स ने समाजवादी सिद्धांतों को वैज्ञानिक आधार देने का प्रयास किया।
- व्यावहारिकता पर बल: मार्क्सवाद की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण इसका व्यावहारिक होना है। इसकी कई मान्यताएँ रूस और चीन में सफलतापूर्वक लागू की गई हैं।
- श्रमिक वर्ग की स्थिति को सबलता प्रदान करना: मार्क्सवाद ने श्रमिक वर्ग में वर्गीय चेतना और एकता को जन्म दिया है।
- पूंजीवादी व्यवस्था के दोषों पर प्रकाश डालना: मार्क्सवाद के अनुसार, समाज में हमेशा शोषक और शोषित के बीच संघर्ष चलता रहता है।
आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके मार्क्सवाद के सिद्धांत PDF प्रारूप में डाउनलोड कर सकते हैं।