हनुमान (मंगलवार) व्रत कथा – Hanuman Ji Vrat Katha PDF

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हनुमान (मंगलवार) व्रत कथा – Hanuman Ji Vrat Katha

हनुमान (मंगलवार) व्रत कथा – Hanuman Ji Vrat Katha

हिन्दू धर्म में मंगलवार के दिन को अति उत्तम माना जाता है और इस दिन को मंगल देवता के नाम (Mangal Dev) से भी जाना जाता है। वहीं दूसरी ओर Pauranik व् Dharmik कथाओं के अनुसार इसे Hanuman ka Din माना जाता है। मंगलवार के दिन भगवान हनुमान जी की पूजा की जाती जाती हैं।

भारत में हनुमान जी को अजेय माना जाता है। हनुमान जी अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं. कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तो पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं। मंगलवार भगवान हनुमान का दिन है. इस दिन व्रत रखने का अपना ही एक अलग महत्व है।

Hanuman Vrat Katha – मंगलवार व्रत कथा हिन्दी में

प्राचीन काल की बात है एक नगरी में एक ब्राह्मण पति-पत्नी रहते थे उनके पास कोई भी संतान न होन की वजह से वह बहुत दुखी रहते थे। हर बार की तरह इस बार भी ब्राह्मण वन में पूजा के करने के लिए गया और वह ब्राह्मण वन में बैठकर पूजा करने लगा तथा पूजा होने के बाद वह हनुमान जी से पुत्र प्राप्ति के लिए प्राथना करने लगा और दसर ओर उस ब्राह्मण की पत्नी भी अपने घर पर पुत्र की प्राप्त करने के लिये हर मंगलवार का व्रत रखती थी और हर मंगलवार को व्रत के अंत में बजरंगबली का भोग लगाकर भोजन ग्रहण करती थी।

व्रत के एक दिन वह ब्राह्मणी किसी कारण ना तो भोजन तैयार कर सकी और ना ही वह हनुमान जी को भोग लगा सकी। तभी उस दिन उस ब्राह्मणी ने प्रण लिया कि वह आने वाले अगले मंगलवार को हनुमान जी का भोग लगाकर ही अन्न ग्रहण करेगी। भूखे प्यासे छः दिन के विताने के बाद ही वह मंगलवार के दिन वह ब्राह्मणी बेहोश हो गयी। और तब उसकी इस निष्ठा, त्याग एवं सच्ची लगन व् भक्ति को देखकर हनुमान जी प्रसन्न हो गये। और उस ब्रह्माणी को दर्शन दिया और कहा कि वह उस ब्रह्माणी से बहुत प्रसन्न है और उसे पुत्र प्राप्ति का वर देते है। तथा वर स्वरूप उस ब्रह्माणी को हनुमान जी पुत्र देकर अंतर्धान हो जाते है। ब्राह्मणी पुत्र प्राप्ति से अति प्रसन्न हो जाती है और उस पुत्र का का नाम मंगल रख देती है।

कुछ समय के बाद जब ब्राह्मण अपने घर वापस आया, तो वह उस बालक को देखकर पूछाता है कि यह बालक कौन है। जब उसकी पत्नी उस ब्राह्मण को पूरी कथा बताती है। वह ब्राह्मणी की बातों को छल पूर्ण जानकर उस ब्राह्मण ने अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं किया। एक दिन ब्राह्मण को जब मौका मिला तो ब्राह्मण ने उस बालक को कुएं में गिरा दिया और घर लौटने के बाद जब ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से पूछा कि पुत्र मंगल कहां है? उसी समय पीछे से मंगल मुस्कुरा कर आ जाता है और ब्राह्मण उसे वापस देखकर चौंक जाता है। उसी रात हनुमान जी ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन देकर कहा कि वह पुत्र उन्होंने ही ब्राह्मणी को दिया है तथा सच जानकर ब्राह्मण अति प्रसन्न हिओ जाता है और वह ब्राह्मण पति-पत्नी नियमित रूप से हर मंगलवार को व्रत रखने लगते है। अतः इस प्रकार मंगलवार को व्रत रखने वाले हर मनुष्य पर हनुमान जी की असीम कृपा बानी रहती है।

Hanuman Vrat Pooja Vidhi – मंगलवार व्रत पूजा विधि

  • हनुमानजी का व्रत लगातार 21 मंगलवार करना चाहिए।
  • मंगलवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान वगैरह से निवृत्त होकर सबसे पहले हनुमानजी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प करें।
  • इसके बाद ईशान कोण की दिशा (उत्तर-पूर्व कोने) में किसी एकांत स्थान पर हनुमानजी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर गंगाजल के छीटें देकर उनका लाल कपड़ा धारण कराएं। फिर पुष्प, रोली और अक्षत के छीटें दें।
  • इसके बाद चमेली के तेल का दीपक जलाएं और तेल की कुछ छीटें मूर्ति या तस्वीर पर डाल दें।
  • इसके बाद हनुमानजी फूल अर्पित करें और अक्षत व फूल हाथ में रखकर उनकी कथा सुनें और हनुमान चालिसा और सुंदरकांड का पाठ भी करें।
  • इसके बाद आप भोग लगाएं और अपनी मनोकामना बाबा से कहें और प्रसाद सभी में वितरण कर दें।

Hanuman ji Aarti – हनुमान जी की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।

जाके बल से गिरिवर कांपै ।
रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।

अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ।।

दे बीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ।।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ।।

लंका जारि असुर सब मारे ।
सियाराम जी के काज संवारे ।।

लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे ।
लाय संजीवन प्राण उबारे ।।

पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ।।

बाईं भुजा असुर संहारे ।
दाईं भुजा संत जन तारे ।।

सुर नर मुनि आरती उतारें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ।।

कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरति करत अंजना माई ।।

जो हनुमान जी की आरती गावे ।
बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।

लंक विध्वंस किए रघुराई ।
तुलसिदास प्रभु कीरति गाई ।।

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।

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