अन्नपूर्ण व्रत कथा – Annapurna Vrat Katha and Aarti
माता अन्नपूर्णा का 21 दिवसीय यह व्रत अत्यन्त चमत्कारी फल देने वाला है। यह व्रत (अगहन) मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू कर 21 दिनों तक किया जाता है। इस व्रत में अगर व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करके भी व्रत का पालन किया जा सकता है। इस व्रत में सुबह घी का दीपक जला कर माता अन्नपूर्णा की कथा पढ़ें और भोग लगाएं ।
हिंदी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाते हैं। अन्नपूर्णा जयंती के दिन व्रत करने से घर अन्न, खाद्य पदार्थों और धन्य-धान से भर जाता है। आज के दिन मां अन्नपूर्णा की विधि विधान से पूजा की जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने लोक कल्याण के लिए भिक्षुक रुप धरा था और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा अवतार धारण किया। आइए जानते हैं अन्नपूर्ण जयंती के मुहूर्त, महत्व एवं कथा के बारे में।
अन्नपूर्ण व्रत कथा – Annapurna Vrat Katha in Hindi
एक समय की बात है। काशी निवासी धनंजय की पत्नी का नाम सुलक्षणा था । उसे अन्य सब सुख प्राप्त थे, केवल निर्धनता ही उसके दुःख का कारण थी। यह दुःख उसे हर समय सताता था । एक दिन सुलक्षणा पति से बोली- स्वामी! आप कुछ उद्यम करो तो काम चले । इस प्रकार कब तक काम चलेगा ? सुलक्षण्णा की बात धनंजय के मन में बैठ और वह उसी दिन विश्वनाथ शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए बैठ गया और कहने लगा- हे देवाधिदेव विश्वेश्वर ! मुझे पूजा-पाठ कुछ आता नहीं है, केवल तुम्हारे भरोसे बैठा हूँ । इतनी विनती करके वह दो-तीन दिन भूखा-प्यासा बैठा रहा ।
यह देखकर भगवान शंकर ने उसके कान में ‘अन्नपूर्णा ! अन्नपूर्णा!! अन्नपूर्णा!!!’ इस प्रकार तीन बार कहा। यह कौन, क्या कह गया ? इसी सोच में धनंजय पड़ गया कि मन्दिर से आते ब्राह्मणों को देखकर पूछने लगा- पंडितजी ! अन्नपूर्णा कौन है ? ब्राह्मणों ने कहा- तू अन्न छोड़ बैठा है, सो तुझे अन्न की ही बात सूझती है । जा घर जाकर अन्न ग्रहण कर । धनंजय घर गया, स्त्री से सारी बात कही, वह बोली-नाथ! चिंता मत करो, स्वयं शंकरजी ने यह मंत्र दिया है।
वे स्वयं ही खुलासा करेंगे। आप फिर जाकर उनकी आराधना करो । धनंजय फिर जैसा का तैसा पूजा में बैठ गया। रात्रि में शंकर जी ने आज्ञा दी । कहा- तू पूर्व दिशा में चला जा । वह अन्नपूर्णा का नाम जपता जाता और रास्ते में फल खाता, झरनों का पानी पीता जाता । इस प्रकार कितने ही दिनों तक चलता गया । वहां उसे चांदी सी चमकती बन की शोभा देखने में आई । सुन्दर सरोवर देखने में या, उसके किनारे कितनी ही अप्सराएं झुण्ड बनाए बैठीं थीं । एक कथा कहती थीं । और सब ‘मां अन्नपूर्णा’ इस प्रकार बार-बार कहती थीं।……………………………………………………………………………………… पूरी कथा पढ़ने की लिए आप नीचे गए लिंक का उपयोग करके PDF में डाउनलोड कर सकते हैं।
अन्नपूर्ण व्रत पूजा विधि – Annapurna Vrat Pooja Vidhi
- अन्नपूर्णा जयंती के सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं और सूर्य को जल अर्पित कर व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- इसके बाद पूजा स्थल को साफ कर गंगाजल का छिड़काव कर लें।
- इस दिन रसोईघर की स्नान से पूर्व अच्छे से सफाई कर लें और वहां भी गंगाजल का छिड़काव करें।
माँ अन्नपूर्णा की आरती –
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम ।
जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम ।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम ॥
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम ।
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम ।
सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम ॥
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम ।
चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम ।
चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम ॥
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम
देवि देव! दयनीय दशा में, दया-दया तब नाम ।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल, शरण रूप तब धाम ॥
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम ।
श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या, श्री क्लीं कमला काम ।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम ॥
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम ।
॥ माता अन्नपूर्णा की जय ॥
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