श्राद्ध विधि – Shraddh Vidhi Book PDF

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श्राद्ध विधि – Shraddh Vidhi Book

श्राद्ध विधि – Shraddh Vidhi Book

श्राद्ध विधि के बारे में जानना बहुत जरूरी है। श्राद्ध विधि के दौरान, बुद्धिमान व्यक्ति श्रोत्रिय आदि से विहित ब्राह्मणों को पितृ-श्राद्ध और वैश्व-देव-श्राद्ध के लिए बुलाते हैं। पितृ-श्राद्ध के लिए किसी की सामर्थ्यानुसार अयुग्म (एक) और वैश्व-देव-श्राद्ध के लिए युग्म (दो) ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिए।

श्राद्ध विधि का महत्व

धर्म ग्रंथों के अनुसार, पितरों की भक्ति से व्यक्ति को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वशिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप-ये सात ऋषि महान योगेश्वर एवं पितर माने गए हैं।

श्राद्ध विधि हिन्दी में – Shraddh Vidhi Hindi

श्राद्ध कर्म- एक संक्षिप्त विधि क्रमांक विधि:

  • सर्वप्रथम ब्राह्मण का पैर धोकर सत्कार करें।
  • हाथ धोकर उन्हें आचमन कराने के बाद साफ़ आसन प्रदान करें।
  • देवपक्ष के ब्राह्मणों को पूर्वाभिमुख तथा पितृ-पक्ष और मातामह-पक्ष के ब्राह्मणों को उत्तराभिमुख बिठाकर भोजन कराएं।
  • श्राद्ध विधि का ज्ञाता पुरुष यव-मिश्रित जल से देवताओं को अर्ध्य दान कर विधि-पूर्वक धूप, दीप, गंध, माला निवेदित करें।
  • इसके बाद पितृ-पक्ष के लिए अपसव्य भाव से यज्ञोपवीत को दाएँ कन्धे पर रखकर निवेदन करें। फिर ब्राह्मणों की अनुमति से दो भागों में बंटे हुए कुशाओं का दान करके मंत्रोच्चारण-पूर्वक पितृ-गण का आह्वान करें तथा अपसव्य भाव से तिलोसक से अर्ध्यादि दें।
  • यदि कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण या भूखा पथिक अतिथि रूप में आ जाए तो निमंत्रित ब्राह्मणों की आज्ञा से उसे यथेच्छ भोजन निवेदित करें।
  • निमंत्रित ब्राह्मणों की आज्ञा से शाक तथा लवणहीन अन्न से श्राद्ध-कर्ता यजमान निम्न मंत्रों से अग्नि में तीन बार आहुति दें:

प्रथम आहुतिः- “अग्नये काव्यवाहनाय स्वाहा”

द्वितीय आहुतिः- “सोमाय पितृमते स्वाहा”

  • आहुतियों से शेष अन्न को ब्राह्मणों के पात्रों में परोस दें।
  • इसके बाद रुचि के अनुसार अन्न परोसें और अति विनम्रता से कहें कि ‘आप भोजम ग्रहण कीजिए’।
  • ब्राह्मणों को भी तत्पश्चात और मौन होकर प्रसन्न मुख से सुखपूर्वक भोजन करना चाहिए। यजमान को क्रोध और उतावलेपन को छोड़कर भक्ति-पूर्वक परोसते रहना चाहिए।
  • फिर ऋग्वेदोक्त ‘रक्षोघ्न मंत्र’ ॐ अपहता असुरा रक्षांसि वेदिषद इत्यादि ऋचा का पाठ कर श्राद्ध-भूमि पर तिल छिड़कें। अपने पितृ-रूप से उन ब्राह्मणों का स्मरण करते हुए निवेदन करें कि ‘इन ब्राह्मणों के शरीर में स्थित मेरे पिता, पितामह और प्रपितामह आदि आज तृप्ति लाभ करें’।

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