Shree Maruti Stotra (मारुति स्तोत्र)
समर्थ रामदास स्वामी ने 17वीं शताब्दी में लिखित शree Maruti Stotra (मारुति स्तोत्र) का निर्माण किया। इस स्तोत्र में, समर्थ रामदास स्वामी ने मारुति (हनुमान) का विस्तृत वर्णन किया है और उनके प्रति अपनी भक्ति दर्शाते हुए विभिन्न श्लोकों के माध्यम से उनकी प्रशंसा की है। मारुति स्तोत्र या हनुमान स्तोत्र भगवान हनुमान की स्तुति करने वाला एक लोकप्रिय भजन है। मारुति शक्ति के देवता हैं और समर्थ रामदास का मुख्य उद्देश्य एक स्वस्थ समाज का विकास था। उन्होंने “भीमारूपी स्तोत्र” भी रचा, जो मारुति स्तोत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। समर्थ रामदास ने मारुति की अनगिनत शक्तियों का भी वर्णन किया है।
मारुति स्तोत्र: प्रार्थना और लाभ
मारुति स्तोत्र के पहले 13 श्लोकों में मारुति का गुणगान किया गया है, जबकि अंतिम 4 चरणश्रुति (गुण और लाभ) का वर्णन करते हैं। जो लोग मारुति स्तोत्र का नियमित पाठ करते हैं, उनकी सभी परेशानियां और चिंताएं श्री हनुमान के आशीर्वाद से समाप्त हो जाती हैं। ऐसे भक्त अपने सभी शत्रुओं और नकारात्मकताओं से मुक्त हो जाते हैं। यह माना जाता है कि यदि आप इस स्तोत्र का 1100 बार पाठ करते हैं, तो आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
मारुति स्तोत्र – Maruti Stotra
भीमरूपी महारुद्रा, वज्रहनुमान मारुती | वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना ||१||
महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवी बळें | सौख्यकारी दुःखहारी, दुत वैष्णव गायका ||२||
दीननाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदांतरा| पाताळदेवताहंता, भव्यसिंदूरलेपना ||३||
लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना | पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परितोषका ||४||
ध्वजांगे उचली बाहो, आवेशें लोटला पुढें | काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ||५||
ब्रह्मांडे माईलें नेणों, आवळे दंतपंगती | नेत्राग्नीं चालिल्या ज्वाळा, भ्रुकुटी ताठिल्या बळें ||६||
पुच्छ ते मुरडिले माथा, किरीटी कुंडले बरीं | सुवर्ण कटी कांसोटी, घंटा किंकिणी नागरा ||७||
ठकारे पर्वता ऐसा, नेटका सडपातळू | चपळांग पाहतां मोठे, महाविद्युल्लतेपरी ||८||
कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे | मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधें उत्पाटिला बळें ||९||
आणिला मागुतीं नेला, आला गेला मनोगती | मनासी टाकिलें मागें, गतीसी तुळणा नसे ||१०||
अणूपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे | तयासी तुळणा कोठे, मेरु मंदार धाकुटे ||११||
ब्रह्मांडाभोवतें वेढें, वज्रपुच्छें करू शकें | तयासी तुळणा कैची, ब्रह्मांडी पाहता नसे ||१२||
आरक्त देखिलें डोळा, ग्रासिलें सूर्यमंडळा | वाढतां वाढतां वाढें, भेदिलें शून्यमंडळा ||१३||
धनधान्य पशूवृद्धि, पुत्रपौत्र समग्रही | पावती रूपविद्यादी, स्तोत्रपाठें करूनियों ||१४||
भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही | नासती तूटती चिंता, आनंदे भीमदर्शनें ||१५||
हे धरा पंधरा श्लोकी, लाभली शोभली बरी | दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चन्द्रकळागुणें ||१६||
रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासि मंडणू | रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ||१७||
॥इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम्॥
मारुति स्तोत्र की जप की विधि
- मारुति स्तोत्र का पाठ प्रातः या संध्या वंदन के समय करना चाहिए।
- इस का पाठ करने से पहले स्वयं को शुद्ध करें।
- इसके बाद हनुमान जी की प्रतिमा के सामने आसन बिछाएं और बैठें।
- हनुमान जी की विधिवत पूजा करें।
- फिर पाठ शुरू करें।
- फल प्राप्ति के लिए पाठ को 1100 बार करें।
- पाठ करते समय हनुमान जी का ध्यान अवश्य रखें।
- पाठ एक स्वर में लयबद्ध तरीके से करें।
- बहुत ऊँची आवाज में चिल्लाकर पाठ न करें।
- पाठ करने वाले जातक को मांसाहार से दूर रहना चाहिए।
- इसके अलावा शराब, सिगरेट, पान-मसाला या अन्य मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
मारुति स्तोत्र पाठ करने के लाभ
- मारुति स्तोत्र का पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त को आशीर्वाद देते हैं।
- इस पाठ से भक्त के जीवन में शांति और सुख का संचार होता है।
- इस पाठ से भक्त के हृदय से भय का नाश होता है।
- हनुमान जी अपने भक्त को सभी कठिनाइयों से मुक्त कर देते हैं।
- इस पाठ से भक्त का धन-धान्य में वृद्धि होती है।
- मारुति स्तोत्र के पाठ से साधक के चारों ओर स्थित सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
- यह पाठ भक्त के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है।
- इस पाठ से हनुमान जी रोग और कष्टों का निवारण करते हैं।
- मारुति स्तोत्र के पाठ से भक्त की मानसिक और शारीरिक शक्ति बढ़ती है।
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