अथर्ववेद
अथर्ववेद का हिन्दू धर्म के चार मुख्य वेदों में से एक है और इसका महत्वपूर्ण स्थान है और इसके बाद ऋग्वेद की वेदांत अवस्था माना जाता है। अथर्ववेद में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन हैं। अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अंदर पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का उत्तम विवेचन करता है। अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना संबन्धी बहुत से मन्त्र हैं।
अथर्ववेद का समय लगभग 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है। अथर्ववेद में ब्रह्मण, आरण्यक और उपनिषद जैसे उपांग भी हैं। इस वेद में मुख्यतः आयुर्वेद, धर्म, यज्ञ, भूमि, ज्योतिष, राजनीति, अर्थशास्त्र, गणित आदि के विषयों पर चर्चा है। अथर्ववेद में बहुत से मंत्र हैं जो रोग निवारण, उपाय, संयम, ध्यान, उपासना, विज्ञान, धर्म और अन्य कई विषयों पर हैं। इसके अलावा, अथर्ववेद में भगवान के विभिन्न गुणों और शक्तियों की प्रशंसा भी की गई है।
अथर्ववेद के मंत्र
अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त और 6000 मन्त्र होने का मिलता है, परंतु किसी-किसी में 5987 या 5977 मन्त्र ही मिलते हैं। और लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद के हैं। अथर्ववेद का 20 काण्ड ऋग्वेद की रचना हे। ऋषिमुनि और विद्वानों के अनुसार 19 वा काण्ड और 20 वा काण्ड परवर्ती है।
मंत्र 3 प्रकार के हैं- सात्विक, तांत्रिक और साबर। सभी मंत्रों का अपना-अलग महत्व है।
होतारं रत्नधातमम् ।। इसमंत्र के ऋषि-मधुछन्दा,देवता अग्नि,छन्द गायत्री, स्वर षडज हैं ।
अथर्ववेद में श्लोक
इसमें 6000 मंत्रों के साथ 730 सूक्त हैं, जो 20 पुस्तकों में विभाजित हैं। अथर्ववेद में 1200 से अधिक श्लोक प्रारंभिक वैदिक पाठ यानी ऋग्वेद से लिए गए थे।